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नयी कहावत है कुछ पैदाइशी गधे होते है तो कुछ पढ़लिखकर गधे बन जाते है .अभी तक हम चुंगी के स्कूल मे पड़ते आये है “ग” से गधा होता है ,लेकिन अब पाठ्यक्रम मे परिवर्तन किया जा रहा है ,क्योंकि “ग” से गुजरात भी होता है . गुजरात के गाँधी जी विश्व मे सत्य-अहिंसा के प्रतीक के रूप मे विख्यात है तो गुजरात के “गधे” भी राजनीति के धुरंदरों के लिये प्रेरणास्रोत बन गये है . किसी ने सोचा ना था कि गधे की तरह काम करने वाला “सेवक” आजादी के बाद देश के सबसे बड़े नेता के रूप मे प्रतिष्ठित होगा .उत्तर प्रदेश का चुनाव इतिहास में दर्ज हो गया है क्योंकि चुनाव प्रचार गधा प्रेमी और गधा विरुद्ध राजनेताओ के बीच लड़ा गया .आखिर चुनाव परिणामों में सिद्ध कर दिया गधा भी बड़े काम का है और उससे भी प्रेरणा मिल सकती है .
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देश ही क्यों विदेश मे भी अभी तक बेचारे रहे प्राणी गधे को नयी पहचान- प्रतिष्ठा मिली है –विश्वविद्द्यालय मे शोध कार्य शुरु हो गये है निबन्ध -लेख काव्य संग्रह रचे जा रहे है .घूरे के ही नहीं गधों के भी दिन कभी न कभी बहुरते हैं .. लोग भूल गये है कभी महान साहित्यकार कृष्णचंदर जी ने गधो की विलच्छन प्रतिभा को पहचान लिया था तभी उन्होने ” गधे की आत्मकथा ” जैसा बेजोड़ महा व्यंगग्रंथ रच दिया .
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भाजपा के आधुनिक इतिहास -भूगोल मे प्रेरणा स्रोत के प्रतीक चिन्ह के रूप मे ” गधे” को स्थान देने पर विचार हो रहा है तो यू0पी0 ओर उत्तराखंड राज्यों मे प्रचंड जीत के बाद संसद मे गधे को रास्ट्रीय पशु घोषित किये जाने की मांग ज़ोर पकड़ रही है ओर यह मांग सड़क पर भी उतर सकती है –इस पर तर्क -वितर्क ओर कुतर्क अभी से शुरु हो गये है . विपच्छ गधे को प्राप्त हो रहे इस विशेष दर्जे पर घोर आपत्ति कर रहा है ओर इसमे भी साम्प्रदायिक एंगिल देख रहा है — यू0पी0 के चुनाव प्रचार मे भय्या -भाभी ,पप्पू ओर बुआ जी द्वारा गधो की आलोचना करने पर गधे समुदाय की आत्मा को चोट पहुंची है.गुजरात के गधों के समर्थन में प्रदेश के सब गधे एकजुट हो गए है . परिणामतः 5 साल तक बुआ ओर बबुआ का बोझ उठाने से सॉफ इंकार कर दिया है . ऐसी दुलत्ती मारी है कि 5 साल तक विरोधी तत्व दर्द से कराहते रहींगे.
.गुजरात के गधो के साथ देश के करोड़ो -करोड़ो गधे आंदोलन पर उतर आये है -जगह जगह “गधा समागम” के आयोजन हो रहे है .. देश ही नही विदेशो मे भी यह खबर मीडिया मे सुर्खिया बन रही है . गुजरात के गधो के आचार-व्यवहार पर नये शोध कार्य हो रहे है. गधा चालीसा , गधा गीत जैसे काव्य ग्रंथ रचे जा रहे है . पूरी पूरी संभावना है गाँधी की तरह देश विदेश मे गुजरात के गधो की मूर्तियाँ स्थापित की जायेंगी . समय -समय पर नेतागण उन पर माल्यार्पण करेंगे ओर चुनाव मे जीत के लिये आशीर्वाद प्राप्त करेंगे
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वैसे तो साहित्य मे ” समय पर गधे को बाप बना लेना” जैसी कहावत रही है, लेकिन इन चुनाव परिणामो ने ” गधे” को भी खोया सम्मान प्राप्त हुआ है अन्यथा अभी तक अयोग्य व्यक्ति को “गधा” कह कर अपमानित किया जाता रहा है .
मुझ गदहाश्री की ओर से आप सभी गधा प्रेमियो को होली मुबारक –मज़ाख नही अब ” गदहाश्री” आदरसूचक माने जाने लगा है . होली मुबारक ! .
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