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चुनाव में गधे ?

aaina
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“ये अच्छी बात नहीं है” कहने वाले कभी प्रधानमंत्री रहे  श्री अटल बिहारी जी के देश में चुनाव प्रचार में कैसी -कैसी -ऐसी-वैसी बातें हो रही है ,यह सोच कर बेचारा सीधा साधा गधा भी दुखी है . अब भला चुनाव प्रचार में गधे का क्या काम ,लेकिन हर पार्टी का नेता “माई बाप” बनाने पर तुला है . गधे को समझ नहीं आ रहा है वो गधा कौन है? जिसकी और इशारा किया जा रहा है ,क्योंकि गधे को तो कोई गधा कहेगा नहीं, वो तो बेचारा है ही गधा ..कहीं नेताओं का इशारा मतदाताओं की और तो नहीं है ,जो आजादी के बाद से लोकतंत्र का बोझ ढो रहा है और रो भी नहीं रहा है .इस बेचारे गधे की किस्मत तो देखिये कुत्ते जैसी हो गयी है -धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का .कितने चुनाव आये गए लेकिन नागरिक की हालात जस की तस ..सरकारी -स्कूल-अस्पताल -रोटी-रोजगार पानी बिजली की कोई बात ही नहीं कर रहा है

चुनाव प्रचार में कितनी गन्दी गन्दी अशोभनीय बातें कही जा रही है हद है -गधा सोच रहा है क्या ये सभ्य देश में चुनाव हो रहे है ? चुल्लू भर पानी में डूब मरो , आतंकवादी , चूहा ..गेंडा, गधा जैसे विशेषणों से एकदूसरे नेताओं को नवाजा जा रहा है . ताज्जुब ये है इस गंदे प्रचार में पीएम से लेकर सीएम तक शामिल है, तो छुटभय्ये नेताओं का तो कहना ही क्या .

कोई खांटी हिंदूवादी दल है ,कोई पिछड़ा-मुस्लिम दल तो कोई दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे चुनावी जुए में पत्ते फेंट रहा है . मजा ये है हर दल में बाहुबली,अपराधी और धनपति भरे पड़े है . बड़ी बेशर्मी से नेतालोग कह भी रहे है चुनाव ऐसे ही लोगों के भरोसे लड़े और जीते जाते है . गधा कान खुजा रहा है क्या कथित महान देश ऐसे ही चलता रहेगा ? सुन ते पड़ते आये है की भारत विश्व गुरु बनेगा –विश्व के देश टकटकी लगाए विधानसभा चुनाव प्रचार देख रहे है –क्या सोच रहे होंगे सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है


भारत वासियों को प्रचार देखकर मजा आ रहा है -खासा मनोरंजन हो रहा है- लेकिन शर्म भी आ रही है ,आनी चाहिए –इतने बड़े बड़े पद पर आसीन नेता लोग किस बेहूदा भाषा-मुहावरों का प्रयोग कर रहे है .कहाँ जा रहा है हमारा देश ? बस माँ-बहिन की गालियाँ और बची है –मर्यादा -नीति -शालीनता अपना अपना आँचल बचाये दुबकी-सहमी है ,क्योंकि चुनाव के लोकतंत्र उत्सव में हर पार्टी का नेता चीरहरड़ पर आमादा है .

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