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३ नागरिकों की मृत्यु की खबर छपी है –८ नवम्बर से अब तक देश में लगभग ९०-९५ नागरिक सरकार की क्रूर व्यवस्था का शिकार हो चुके है -ये दर्दनाक ख़बरें विचलित करने वाली हैं . उस पर तुर्रा -हुक्म ये है कि इन घटनाओ को तूल नहीं दिया जाये –ये बात छाती पीटते –बिलखते मृत व्यक्तियों के परिजनों से आँखे मिलाकर कहते तो पता चलता -टीवी पर बड़ी -बड़ी बात करना और बात है . अगर इन नेताओ के परिजन बैंको की बदहवास लाइनों में सांस छोड़ देते तब सच का सामना होता –जो वर्तमान में कितना डरावना है —
धर्म और राजनीति दोनों इहलोक छोड़ परलोक सुधारने की बात करते है आज मर रहे हो कोई बात नहीं जन्नत में सब सुख है -वर्तमान छोड़ो -कल सुनहरा है –यही बात -यही घुटी आतंकवादियो को पिलाई जाती है —
कोई नेता बैंको की लाइन में मरने वाले व्यक्ति के परिवार को सांत्वना देने गया है ? अपने बेटी-बेटे के ब्याह के लिए हाड गला -गला कर जमा धन बैंक से न मिलने पर फांसी झूल गए लोगो की आँख में झाँकने की हिम्मत सरकार में है ?दूसरी और सरकार के बड़े -बड़े नेता मंत्रियो के बेटे-बेटियो के भव्य -इंद्रलोकीय विवाह आयोजन हो रहे है जिनमे ५००-५०० करोड़ तक ख़र्च का अनुमान किया जा रहा है –क्या शर्मनाक नहीं है ? जनता से कहा जा रहा है बस चाय पिलाकर शादियां निबटाओ “पर उपदेश कुशल बहुतेरे “
जो लोग सरकार की सूझबूझ और वर्तमान मौद्रिक नीति के समर्थक है, वे भी निश्चित ही बैंको की लाइन में दम तोड़ रहे लोगो की गैरइरादतन हत्या में बराबर साझीदार है और यदि ईश्वर का कोई दंडविधान है तो इन सब का नाम भी लाल रोशनी से लिखा जा रहा होगा —
निर्बल को न सताइये जाकी मोटी हाय ,
मरी खाल की श्वांस सो लोह भसम होइ जाइ
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