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फिर रावण मर गया !

aaina
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खेल खिलोने वाला रावण फिर मर गया और फूंक भी दिया गया -बचपन में गुड्डे-गुड़िया का ब्याह जैसे खेल भी बच्चे पूरी संजीदगी से खेलते है ,लेकिन बच्चे बड़े हो जाते है ,बूढे भी हो जाते है, फिर भी खेल खिलोने में रस रहता है -दशहरे का उत्सव है ,बुराई के प्रतीक रावण का पुतला जलाना समझ में आता है, लेकिन राजनेता भी जब इस गुड्डे -गुड़िया जैसे खेल में शामिल होते है तो उनकी नासमझी पर तरस आता है . क्या राजा की किसी सम्प्रदाय विशेष के प्रति प्रतिबद्धता उचित है ? . इतिहास -पुराणों से प्रेरणा लेकर स्वस्थ-सांस्कृतिक मानवीय समाज की सरंचना और व्यवहार एक आदर्श उद्देश्य है ,

किन्तु देश की वर्तमान परिस्थितियां सर्वथा विपरीत  है .नीति -आदर्श जैसे शब्द तथाकथित रावण की दहलीज पर सर पटक रहे है , जिस राम ने दलित शबरी के झूठे बेर खाये थे ,उन दलितो के प्रति कितना क्रूर व्यवहार किया जा रहा है ,आये दिन दिल दहला देने वाले किस्से अखबारों की सुर्खियां बनते है . भगवान् ने जिस मर्यादा का पालन अपने जीवन में किया है, वो मर्यादा न तो समाज में ना ही राजनीति में दिखाई पड़ती है .-जिस राम के राज में एक धोबी की असहमति को भी सम्मान मिलता है , ऐसे राम कहाँ है ?जंगल के पशु ही नहीं आदिवासियों का हित चाहने वाले ,उनका कल्याण करने वाले राम कहाँ है ? रामलीला में राम का स्वांग धर धनुष चलाकर रावण के पुतले का दहन आसान है , उनके चरित्र को जीवन में उतारना किसी के लिए भी दुष्कर है – लेकिन क्यों ?


देश में व्याप्त अत्यधिक गरीबी ,कुपोषण ,अशिछा -पानी- बिजली -अस्पताल -बेरोजगारी -नारी उत्पीडन जैसे प्रश्न आज तक हल क्यों नहीं हुए – जबकि हर वर्ष रावण मारा जाता है . ? दिनोदिन ये प्रश्न विकराल होते जा रहे है . क्या राजनीति बस कुर्सी पाने के लिए ऐशो -आराम -वैभव -भोग के लिए है ? -और कुर्सी-सत्ता पाने के लिए कोई भी अनैतिक मार्ग उचित है ? होना चाहिए ? दिल पर हाथ रखकर कहिये क्या यही रामराज्य है ?


लगता तो यह है चुनाव में रावण साधू का वेश धर सीता यानि सत्ता हथियाने का उपक्रम करता है .


सच तो यह है जब हम राम जन्म उत्सव मना रहे होते है तो कही रावण भी जनम लेता है -दोनों साथ साथ जीते है –रामायण यदि रामकथा है तो रावण ही उसे पूर्ण करता है -हम सब के भीतर शुभ-अशुभ दोनों वृत्तियाँ रहती है , अपने जीवन में हम कभी राम बन जाते है तो कभी रावण . जो कण कण में व्याप्त है , जो मानव ,पशु-पछि -समूची प्रकृति में सांस ले रहे है – ऐसे प्रभु राम सबको सद्बुद्धि दे -मानव जाति का कल्याण करें –

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