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वन्दे मातरम् ! तिरंगे को सलाम, 70 साल की आजादी पर्व पर हार्दिक बधाई !!
सर्व विदित है इस आजादी के लिये 20-22 साल के युवा भगत सिंह ,सुखदेव ,राजगुरु जैसे फांसी झूल गये थे ..गाँधी .सुभाष ,चंद्रशेखर आज़ाद सरीखे देशभक्त तत्कालीन 35 करोड़ ग़ुलाम नागरिको की खुशहाली , स्वतंत्रता के लिये संघर्ष कर रहे थे ,जवाहर लाल नेहरू सरीखे अभिजात्य वर्ग के लोग भी आजादी के संघर्ष मे जेल की यातनाएं झेल रहे थे ओर जाने कितने जाने-अनजाने देशवासी फिरंगियों के ज़ुल्मो सितम से मुक्ति के लिये तडप रहे थे …एक आज़ादी की उमंग – तरंग नागरिको की नस -नस मे मचल रही थी .15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हुआ , लेकिन इस आज़ादी को बचाये रखने के लिये आज भी आये दिन हमारे जाबांज सैनिक शहीद हो रहे है -इनके माता पिता ,भाई -बहिन ,सगे सम्बन्धियो के कलेजे पर क्या बीतती होगी जब तिरंगे से लिपटा कोई शहीद जाबांज घर की दहलीज पर पहुंचता होगा ..ओह !
– आजादी पर्व पर सर्व प्रथम इन वीरों को नमन करने का दिन है –इनके जज़्बे को सलाम करने का दिन है ,क्योंकि इन्ही जाबांज सैनिकों की बाजुओं के बल पर देश आज़ाद है ,ओर रहेगा .
69 साल गुज़र गये ..विकास की चमक -दमक से देश के नागरिकों की ही नही ,विश्व की आंखे भी चोंधिया रही है ..धीरे -धीरे ही सही, देश को समूचे विश्व मे सम्मान मिल रहा है . भारत की आवाज बड़े बड़े महाबली देश सुन रहे है -समझ रहे है – ओर कहने को विवश हुए है कि भविष्य भारतवर्ष का है ,उसके दर्शन का है ,उसकी नीतियो का है –यह कोई कम उपलब्धि नही है . यह ठीक है आज मुस्कराने की वजह है ..गीत संगीत मे सराबोर होने का दिन है. देशगीत की धुनो पर थिरकने का अवसर है …लेकिन ?
69 साल बाद भी देश के रास्ट्रपति ओर प्रधानमंत्री गरीब की बात कर रहे है ,दलित ..अल्पसंख्यक ओर महिला अत्याचार से कठोरता से निपटने का संदेश दे रहे है, सामाजिक समरसता के बिगडते परिदृश्य पर चिंता कर रहे है तो बात गंभीर है -समस्या विकराल है ,जो 69 साल की आजादी के बाद भी बनी हुई है ..चुनावी वादो मे भले ही कहते रहे कि हर साल एक करोड़ रोजगार देंगे ..लेकिन दुर्भाग्य है चुनावी वादे मात्र जुमलेबाजी बन कर रह जाते है ..दशको से हर बार वही गरीबी –रोटी-रोजगार ,सबको शिच्छा-चिकित्सा के बारे मे वादे क्यो किये जाते है ? यह सरासर धोखा नही तो क्या है ?
आज भी संसद -विधानसभाओं मे 35-40 पतिशत अपराधी क्यों है ? सांसद-विधायक का चुनाव 40-50 करोड़ की धनराशि खर्च किये बिना लड़ा जा सकता है ?देश की आजादी क्या मात्र २० प्रतिशत सेठ साहूकारों के लिए है ? सरकारी -अर्धसरकारी उपक्रमो में दशकों से रिक्त पदों पर भर्ती न करके ठेकेदारो को मजदूरों के शोषण का अधिकार क्यों दिया गया है .ठेके पर अपनी हड्डियां गलाकर ५-७-८ हजार मात्र पर कैसे और किन हालातों में आजीविका चलाई जा सकती है ? देश में बढ़ रहे अपराधों -हिंसा -अराजकता के लिए बेरोजगारी के समस्या ही है .
70 साल की आजादी पर्व पर इन अनुत्तरित प्रश्नो पर बात करना जरूरी है –क्योंकि ,आखिर कब तक यह प्रश्न इस महान देश के महान नागरिको को व्यथित करेंगे ?
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