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जब रात है इतनी मतवाली …

aaina
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ऎ यु0पी0 के भय्या लोग देखा क्या चुनाव सर पर है और आप लोग नकली दारु पीकर मर रहे है वो भी थोक के भाव ..अरे भाई खुद मरने के लिए कस्ट काहे उठा रहे हो ..नेता लोग नागरिक को मारने का भरपूर लाइसेंस बोले तो ठेका लिया है धर्म के नाम पर, जात के नाम पर. भूख के नाम पर -.वैसे भी रोटी रोजगार तो रह नहीं गया है देश -प्रदेश में सब का सब ठेका दे दिया है पानी-बिजली -स्कूल-अस्प्ताल -विकास सब मोटे-मोटे सेठ लोगो को ठेका दिया है अरे हाँ वही सेठ लोग जो सरकारी बेंको का लाखों करोड़ कर्ज बिना कायम चूर्ण हजम कर गए है.–देखा नहीं सब विभागों में बरसों से भर्ती बंद कर दिया है -ठेका दे दिया है अलग -अलग काम के लिए ..ठेके के लोग का ना ही महंगाई बढ़ता है ना ही पेंशन का झंझट ..इसे कहते है हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा …कहावत ठीक नहीं है क्या …काहे मुंह बिसूर रहे हो-


छप्पर फाड़ बरसात क्या हुई अपन के मिर्ची गुरु गली की दूकान से पौवा चढ़ा आये है ,दूसरा बगल में दबाये है और आठ फुटिया छत पर मुड़े पर उकड़ू बैठ कर फिर ज्ञान बांटने की मुद्रा में आ गए है . अरे हाँ ज्ञान बांटने का शौक आजकल राष्ट्रवाद की तरह हरेक के सर चढ़कर बोल रहा है ..जिसे देखो जिंदाबाद- जिंदाबाद चिल्लाता हुआ दिखाई पड़ रहा है ..


-अबे ओ फ़ालतू लोग ,हम काम की बात कर रहे है और तुम भय्या लोग मजे ले रहे हो ..चुनाव आ रहे है तुम सब लोडों को काम मिल जाएगा २-४ महीने के लिए. नेता जी आये थे कह रहे थे नारे -प्रचार -परदरसन -पत्थर फेंकने के लिए लोंडे चाहिए २०० रूपया रोज पर …तुम लोग बैठे गप्पे तोड़ते रहते हो कुछ काम करो ..नेता लोग के लिए –अबे हाँ सच कह रिया हूँ २०० के अलावा शाम को दारु -शारु , अबे शरू मतलब मुर्गा ..फ्री में मिलेगा –अब मुंह क्यों फाड़ रहे हो .तुम लोग तो बस ,तुम्हे तो बीएम डब्लू के पीछे बाँध के नंगा करके जूत लगाने चाहिए ..इसी काबिल हो ,हम गउ समान गुरु लोग से मसखरी करते हो .


मिर्ची गुरु मूडे से खड़े हो गए है और जोर- जोर से चिल्लाने के उपक्रम में उनके मुंह से झाग निकलने लगा है . इससे पहिले मिर्ची गुरु दूसरा पौवा निकालें मोहल्ले के लोग इधर -उधर हो लिए है .घर के बड़े- बूढ़े समझा रहे है चुनाव आ रहे है ,शाम को जल्दी घर आ जाया करो ,कुछ भी हो सकता है ..ये सब पार्टी के गुंडा -मवाली लोग कुछ भी कर सकते है ..दंगा -फसाद ..हत्या के किस्सों के बिना आजकल कोई चुनाव पूरा नहीं होता ..और अभी यु0पी0 के चुनाव में ५-६ महीने बाकी है, लेकिन कितना हंगामा कट रहा है पूरे देश में –यु-पी- चुनाव की तयारी जैसे पूरे देश में हो रही है –देखा नहीं अखबार भरे रहते है …


किसने लिखा है मुकद्दर हमारा
जीने का मकसद, क्या जीवन हमारा
सपनो की राते और रंगीन बातें
आँखें खुली तो सूना जग सारा
जीने का मकसद क्या जीवन हमारा
सर्दी या गर्मी या बारिश का मौसम
सर पे ना छत है न आँगन हमारा
जीने का मकसद न हाफ़िज़ हमारा
मंदिर या मस्जिद ना तीरथ सहारा
रोली या चन्दन ना टीका हमारा
जीने का मकसद क्या जीवन हमारा
कश्ती हमारी ना मांझी पुकारा
डूबे वहीं पे जहां था किनारा
किसने लिखा है मुकद्दर हमारा ?

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