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मीडिया के सुलतान !

aaina
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कभी कोई सलमान खान किसी प्रश्न के जवाब मे कुछ अनैतिक बयान भर दे दे मीडिया उछल उछल जाता है कि देखो फलाने -ढिकाने ने क्या बोल दिया ? -मानवाधिकार ओर महिला संगठन पीछे क्यों रहें ,वे भी मोर्चा खोल देते है।

–                                          -बॉक्स आफिस के सलमान को सामने देखने की लालसा मे व्यक्तिगत रूप से उपस्थिति हेतु नोटिस भेज दिए जाते है। टी वी चेनलों मे थके , रिटायर कथित बुद्धजीवी बहस करते परस्पर गिरेबां पकड़ते -उलझते दिखाई देने लगते है -इस बेबात के बयान पर अखबार वाले भी संपादकीय लिख मारते है ,खामखां के लेखको के भी चाय पानी का जुगाड़ हो जाता है।—और तो और हम जैसे नौसिखिए लोग भी बकवास विषय पर दुलत्ती झाड़ लेते है . .


–                                        –किसके बयान पर ? उस अभिनेता के बयान पर ,जो स्क्रिप्ट राइटर के डायलॉग बोल -बोल कर तालियां बटोर रहा है , — सार्वजनिक जीवन मे क्या बोलना चाहिए -क्या नही ? जब मंत्री , सासंदों /विधायको को समझ नही, तो मुबईया फिल्मों के एक्टरों से उम्मीद क्यों की जानी चाहिए ?
बेबात का बवाल मचाना है -बस। हाँ संवैधानिक रूप से उत्तरदायी लोगो के बयानों का गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए। –हंगामा भी मचना चाहिए ओर उनके विरुद्ध विधिसंगत कार्यवाही भी होनी चाहिए। ..मामला सुर्खियों तक ही नही अपितु हर दिन फॉलो अप बताना चाहिए।


सच है बीते वर्षो मे मीडिया ने अपनी गरिमा ओर विश्वसनीयता खोई है। किसी भी ऐरे गैरे नत्थू खैरे के ऊलजुलूल बयानों की सुर्खियां बनाई जा रही है ,छुटभईयों को हीरो बनाया जा रहा है। ,बहस मुबाहिसे हो रहे है। कभी -कभी लगता है मीडिया के कुछ हिस्से राज दलों के प्रचार तंत्र का हिस्सा है। ऐसे गैर जिम्मेदार बयान समाज को अांदोलित करते है-किसी चोराहे पर यदि किसी ने अापत्तिजनक बयान दिया तो १०-२० ५० लोगो ने सुना ,लेकिन मीडिया पूरे देश के दर्शको तक पागलपन का प्रसार कर अंजाने ही कुटिल राजनीति का ओजार बऩ जाता है।किसी हद तक “समाज के तनाव -,वैमनस्य का प्रमुख कारण देश का ग़ैर जिम्मेदार मीडिया भी है “


मीडिया को अपनी भूमिका ओर नीतियों पर पुनर्विचार करना ही चाहिए।

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