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मंदिर -प्रवेश वर्जित है ?

aaina
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आधुनिक युग में महाराष्ट्र के शनिमंदिर मॅ पूजा-अर्चना हेतु नारियो को रोका जा रहा है ,परम्परा के नाम पर ! आश्चर्य ! जगत में राम-रहीम ,कृष्ण ,बुद्ध-महावीर सरीखे भगवान -ईश्वर कहे जाने वाले प्रथम पुरुष को भी ९ माह प्रसव पीड़ा सहने के बाद जन्म देने वाली कोई स्त्री है – धर्म शास्त्रो के अनुसार पुरुष यदि श्रेष्ठ है तो स्त्री पृकृति की श्रेष्ठतम कृति है -जो मानव जगत की उत्पत्ति का कारन है . फिर परंपरा-प्रथा के नाम पर किसी मंदिर में स्त्रियों को पूजा -अर्चना करने से वर्जित किये जाने को कैसे उचित ठहराया जा सकता है ? क्या यह नारियो का अपमान-तिरस्कार नहीं है ? सैकड़ों वर्ष पुरानी परम्परा का वर्तमान युग में निर्वाह करना नितांत मूर्खता है . धर्म-पंथ -रीति रिवाजों को अब विज्ञान सम्मत होना चाहिए . सभ्य होते समाज का यही लछन है -अब इंटरनेट के ज़माने में पोस्टकार्ड का प्रयोग बेवकूफी ही कहा जायेगा .
जबकि ६७वे गणतंत्र महोत्सव का जश्न चल ही रहा है तो स्त्रियों के अधिकारों पर निर्णय लेना उचित है . महिला अधिकार -आरछण अधिनियम को मूर्तरूप दिए जाने का समय है ..भारतमाता के रूप में प्रतिष्ठित स्त्रियों को भी कुरीतियों -प्रथाओं की बेड़ियों से मुक्त कीजिये. उसे भी पूर्ण स्वातंत्र्य का अधिकार है .
पूर्ण स्वातन्तृ के लिये देश की नारी को मुक्ति -प्रतिष्ठा चाहिये ! नये युग का आविर्भाव !!! राजनीति -शासन -व्यवस्था मे पुरुष अहन्कार कब तक ? जगतजननी को प्रतिष्ठा मिलनी ही चाहिये !!

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