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किसी दार्शनिक ने कहा है किए जगत भगवान ने बनाया है इस पर बहस जारी है ,किन्तु यह सत्य है हमने अपनी- अपनी सुविधा के अनुसार अपने भगवान निर्मित किये है .साथ ही संस्कृति,पहनावा,रीति-रिवाज़ ओर कर्मकाण्ड भी तय किये है .जन्म से कोई हिन्दू-मुस्लिम-सिख या ईसाई नही होता,उसके शरीर पर ऐसा कोई चिन्ह नही होता ,जो परस्पर इंसान को एकदूसरे से भिन्न करता हो . सर्व विदित है विभिन्न धर्म के ठेकेदारों ने निजी स्वार्थवश पाखंड का जाल फैलाकर व्यर्थ भय उत्पन्न कर ईश्वर के बंदो के शोषण -उत्पीड़न का धंदा चला रखा है .ए खेल अनवरत जारी है . इसी विचार के इर्द-गिर्द मुम्बईया फिल्म पी0 के0 का ताना बाना बुना गया है ,जो बेहद हल्के फुल्के तरीके से समाज-धर्म ओर मीडिया मे व्याप्त विसंगतियो पर सवाल खड़े करती है , चुटीले व्यंग कर हँसाती-गुदगुदाती है ,तो मजहबी आतंकवाद पर भी मानवतावादिओ को सचेत करती है .
धार्मिक पाखण्ड,कुरीतिओं और आपसी वैमनस्य के विरुद्ध कभी संत कबीर जैसे अनेको “खुली आंख” वाले महापुरुष समय समय पर गंभीर प्रश्न उठाते रहे है .ताज्जुब होता है की विभिन्न धर्म के कट्टर अंधविश्वासी पांडे-मोलवी जगत ओर जीवन के परम सत्य की तार्किक ओर वैज्ञानिक खोज के दरवाजे खोलने के लिये कभी तय्यार नही है तथ्यपरक चर्चा मात्र से तथाकथित धर्म खतरे मे आ जाता है , जो शाश्वत है , सनातन है इन पोंगा पंडितो के धर्म की दीवारे इतनी जर्जर है कि किसी किताब से,किसी सिनिमा से दीवारें कंपकपाने लगती है . “ओह माई गोड “की शृंखला मे पी0के0 फिल्म बहुत कमजोर है .आमिर ख़ान के दमदार अभिनय ने इसे यादगार बनाया है . इस फिल्म की लंबाई कम की जा सकती थी . ….
प्रबुद्ध नागरिको का उत्तर दायित्व है कि संविधान प्रदत्त सिनिमा-संस्कृति ओर अभिव्यक्ति की आजादी बनी रहे ,इसके लिये एकजुट प्रयास ही नहीं अपितु सक्रीय हस्तछेप भी करना चाहिये .”,पी के” फिल्म का विरोध अनावश्यक है .
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