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चुनाव में “नो बाल “

aaina
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क्रिकेटफिक्सिंग में “नो बोल “का कितना महत्त्व है सब जानते है। नो बोल फेंकने वाले बोलर फिक्सिंग के तहत अपने उद्देश्य में सफल हो जाते है और करोङो-अरबो के वारे न्यारे हो जाते है।

अब राजनीति में भी “नो बोल” प्रचलन में आ गयी है। चुनाव में लगभग हर राजदल अपने प्रवक्ताओ के द्वारा जहरीले भाषन दिलवाकर मतदाताओ को अपने पाले में करने का कुत्सित प्रयास करने में लगे है। चुनाव आयोग के संज्ञान लेने पर बड़ी मासूमियत से कह कर बच जाते है की “कभी कभी नो बोल हो जाती है ” लेकिन जब तक नेता अपने षड्यंत्र में कामयाब हो चुके होते है।

चुनाव में भ ज पा के अमित शाह , स पा के मो. आज़म ,कांग्रेस के बेनी बाबू जैसे अनेको धुरंदर  खिलाड़ी इस नुस्खे का प्रयोग कर रहे है ,जो देश की राजनीति को कलंकित कर रहे है। …चुनाव आयोग भी दिखावे की कार्यवाही कर कर्तव्य की इति श्री भर कर रहा है। चाहे नेताओ की इन जहरीली “नो बोलो “से दंगा ही क्यों न हो जाए।  कुल मिलाकर फिक्सिंग का खेल है कैसे धर्म-जाति के आधार पर मतदाताओ की ताकत को विभाजित किया जाए। अंग्रेजो की नीति की  तरह बांटो और राज करो ,यही राजनीति का मूल  मन्त्र  है  .
पुरानी कहावत है मोहब्बत और जंग में सब जायज है।   चुनाव में साम-दंड भेद ,हर तरीके के कुटिल तरीके अपनाये जा रहे है ,जो मुंबइया फिल्मो की अंदर वर्ल्ड टाइप फिल्मो में देखने को मिलते है। ऐसे हथकंडो से लोकतंत्र की गरिमा और मर्यादा पर प्रश्नचिन्ह तो लगता ही है ,पड़े-लिखे मतदाताओ में मतदान के प्रति उदासीनता भी उत्पन्न होती है। जहा चुनाव करोडो-अरबो का खेल हो , बाहुबल और निक्रस्ट तोर तरीको का प्रचलन हो तो किसी  ईमानदार प्रत्याशी के निर्वाचित  होने  का  सवाल  ही नहीं   है  और इस बार भी भले  ही सत्ता  की लॉटरी    किसी   भी पार्टी   के हाथ  लगे, संसद  की सूरत   नहीं  बदलने  वाली  । नाग नाथ   नहीं  तो सांपनाथ। ।धन्य है चुनाव प्रक्रिया और देश की राजनीति !

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