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ये क्या किया अन्ना ?

aaina
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आखिर अन्ना का आन्दोलन एक अंधे मोड़ पर आकर ख़त्म हो गया . अन्ना समर्थक
अनशन समाप्ति और ” राजनैतिक पार्टी” के गठन के एलान से हतप्रभ है , स्वयं को ठगा सा अनुभव कर रहे है . जगह -जगह समर्थको का गुस्सा भी जाहिर हो रहा है .
जन लोकपाल की एकमात्र मांग के साथ १५ मंत्रियों के विरुद्ध जांच की मांग भी शामिल किया जाने से सरकार का रुख अन्ना टीम के खिलाफ एकदम कठोर हो गया फिर सभी दलों को अन्ना टीम के सदस्यों ने अपना दुश्मन बना लिया . रही सही कसर शांतिभूषण ने मीडिया को बिकाऊ कहकर पूरी कर दी और फिर वही हुआ जिसका अंदेशा था .अन्ना और कुछ सदस्यों द्वारा जंतर मंतर पर किये जा रहे आमरण अनशन का नतीजा फुस्स हो गया . सरकार ने विभिन्न दलों और मीडिया की अन्ना टीम के विरुद्ध बेरुखी भांपकर आमरण अनशन के प्रति कोई संवेदना नहीं दिखाई . फेस बुक ,ट्विट्टर पर अन्ना को भले ही व्यापक समर्थन मिला ,किन्तु जंतर मंतर पर अनशन कारियों का होसला बढाने समर्थकों की अपेच्छाकृत भीड़ नहीं जुटी . जिससे अन्ना टीम के मन में हताशा घर कर गयी . इस अबूझ , विकट परिस्थिति से निकलने के यत्न किये गए , अरविन्द, गोपाल राय और सिसोदिया की लगातार ख़राब होती सेहत भी अन्ना टीम की चिंता बड़ा गया . जाने माने पत्रकार कुलदीप नय्यर , जनरन वी०के०सिन्ग जैसे कई दिग्गज नागरिको की अपील पर अनशन समाप्ति के साथ ही देश को राजनैतिक विकल्प देने का एलान किया गया , ” खोदा पहाड़ निकली चुहिया ” जैसे मुहावरों का स्तेमाल कर अन्ना टीम के आन्दोलन की आलोचनाओं का सिलसिला शुरू हो गया .
प्रश्न है कि बिना चुनाव सुधार बिल पारित हुए अन्ना टीम अलीबाबा और ४० चोरों के राजनितिक खेल में अपनी जीत सुनिश्चित करने में कैसे कामयाब हो सकते है ? मुहब्बत और राजनीति में सब कुछ जायज है …साम -दंड-भेद के काले हथकंडे जायज करार दिए गए है . ..क्या अन्ना टीम ” जायज -नाजायज ” के सवाल परे रखकर इमानदारी से इस चुनावी वैतरणी पार कर सकेगी .?.फिर अन्ना टीम और अन्य राजनीतिक दलों में क्या फर्क रहेगा ? चोर -चोर मोसेरे भाई के रिश्ते निभाने को अन्ना टीम क्यों उत्सुक दिखाई दे रही है .
कहा जाए तो गलत न होगा की अन्ना टीम के सदस्यों ने जन भावनाओं के ज्वार पर मिटटी डालने का ही काम किया है .सिर्फ और सिर्फ जन्लोक्पाल पर पूरा ध्यान केन्द्रित क्यों नहीं किया गया .१५ मंत्रियो पर कार्यवाही , सभी दलों को चोर और मीडिया तक से भी दुश्मनी लेने का कोई ओचित्य नहीं था . अन्ना टीम का हर सदस्य बडबोलेपन का शिकार हुआ . अंतत एक क्रान्ति घटित होते होते रह गयी . बिना सूझ बूझ के किये गए कार्य की यही परिणिति हो सकती थी , सो हुई .

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