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चंद्रशेखर बनाम गांधी ! [व्यंग]

aaina
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हमारे आगरा के ताजगंज स्थित शमशान घाट पर स्वनाम धन्य क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद की प्रतिमा स्थापित है , अब ये प्रश्न स्वाभाविक ही है – आज़ाद जी को शमशान घाट पर ही क्यों स्थान दिया गया ? संभवत शहर मे इनकी कोई उपयोगिता नही समझी गयी , क्योंकि शासन-प्रशासन मूँछ मरोड़ते कट्टा कमर मे लगाए क्रांतिकारी की प्रतिमा से कैसे आँखे मिला सकता है , फिर नोजवानो मे क्या संदेश जाएगा ? प्रशासन की इस सोच ओर दर्शन पर वाह-वाह करने की तबीयत हो रही है .

बात भी सही है भगत सिंह,राजगुरु,सुखदेव ओर चंद्रशेखर की आग के शोले बरपाती हुई कारगुजारियों के संस्मरण किसी भी सिरफिरे नोजवान की इंडलिया-पिंडलियाँ ,डोले-शोले फड़काने के लिए पर्याप्त है ओर क्या पता काले अँग्रेज़ों के शोषण-दमन ओर भ्रस्टचार के विरुद्ध पड़े-लिखे नोजवान कलम छोड़कर कब सिर पर फिर कफ़न बाँध ले .

इसी तर्ज पर अभी किसी शोचालय का नाम रास्त्र पिता ” बापू” के नाम पर रखने की घोषणा हुई है , ये हुई ना बात . भाई जी ने कितनी दूर की सोची है ,शोचालय के नामों का इतना टोटा पड़ गया है की ज़हन मे सिर्फ़ ओर सिर्फ़ रास्त्रपिता का ही नाम आया . इसे कहते है नेताओं पर गाँधी का प्रभाव . शौचालय तक मे गाँधी-गाँधी स्मरण आते है .क्यों ना हो महात्मा सदेव प्रात स्मरणीय है ओर रहेंगे ओर प्रात का सर्व प्रथम कृत्य है शोच , तो सुबह- सुबह से ही बापू शौचालय से निवृत हुआ नागरिक पूरे दिन ” गाँधी-गाँधी” करता रहेगा . . दरअसल हमारे नेता लोग से अधिक ओर सार्थक सोचने वाला प्राणी देश मे कोई है ही नही ओर ना ही हो सकता है . इनके विवेक ओर दर्शन को सलाम …ज़रा ठहरिए ज़रा निवृत होकर आता हू …..हा अपने ” बापू शोचालय” मे ..आप भी थोड़ी देर के लिए गाँधी हो जाइए .

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