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आई नो ![ गठबंधन क़ी अ-राजनीति ]

aaina
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डॉलर के मुकाबले रुपया धडाम होकर ऐतिहासिक  निम्नतम स्तर पर जा पहुंचा है ,

देशी-विदेशी उद्योग पति सरकार की कार्यशेली पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे है ,नागरिक त्राहि

-त्राहि कर रहे है और वित्त मंत्री जी कह रहे है कि हमें पता है …आई नो .

विगत दशकों से देश राजनीतिk दुरभिसंधि के दोर से गुजर रहा है ..देश

भुला नहीं है की मा० अटल जी की सरकार को सहयोगी दलो ने कभी चैन से जीने नहीं

दिया , इसी तरह वर्तमान यु० ०पी०ऐ ० की सरकार बैसाखियों की राजनीति की

विवशता में सहयोगी दलों के आगे तरह -तरह से नाच रही है और अनिर्णय का शिकार

होकर देश के समछ ज्वलंत समस्याओं के निष्पादन में असहाय और असर्मर्थ है ,

जिसका खामियाजा देश भुगत रहा है .


संविधान में संशोधन होना चाहिए कि चुनाव उपरान्त कोई भी

गठबंधन अमान्य होगा और किसी भी दल को स्पस्ट बहुमत न मिलने की दशा में कम

से कम २ वर्ष के लिए रास्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा . इस अवधि के पश्चात पुन चुनाव कराये जा सकते है .


जब तक बहुमत का शासन नहीं होगा तब तक देश इसी तरह दुर्दशा

झेलने को अभिशप्त रहेगा . चुनाव उपरान्त गठबंधन जैसे प्रयोग पूर्णत असफल होने के

कारण इस सुझाव पर संसद को निर्णय लेना ही चाहिए , यही राष्ट्र हित में है . अन्यथा

सहयोगी दलों के दबाव में अनिर्णय क़ी स्थिति अथवा उल-जलूल फैसले होते रहेंगे और

देश परसपर प्रतिस्पर्धा में विश्व में बहुत पीछे रह जाएगा . मेरा भारत महान का नारा

मात्र किताबों में धरा रह जाएगा .

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