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साला में तो साहब बन गया !

aaina
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संसद के ६० वर्ष पूरे हो गए . इस ऐतिहासिक अवसर पर लोकसभा और राज्यसभा में देश की उपलब्धियों एवं देश की दशा और दिशा पर चर्चा हुई .नेतागण परस्पर बधाई देते हुए दिखाई दिए .किन्तु अधिकाँश नेताओं के संबोधन अंग्रेजी भाषा में होने के कारण संसद की ऐतिहासिक कार्यवाही के निहितार्थ समझने में देश के हिंदी भाषी नागरिक असमर्थ रहे . यद्यपि एकाध नेता ने सांसदों और उच्च पदस्थ मंत्रियो के अंग्रेजी प्रेम पर कटाछ भी किया .
कैसी विडंबना है की हमारे नेतागण अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते है. शायद ही किसी देश में मात्रभाषा का ऐसा तिरस्कार होता हो . जबकि हमारे पूर्वज स्वनाम धन्य महात्मा गांधी सरीखे नेता सदेव राष्ट्र भाषा हिंदी के प्रचार -प्रसार हेतु संकल्पित रहे .
यही नहीं देश के कामकाज ,पत्राचार की भाषा अंग्रेजी ही होती जा रही है बहुरास्ट्रीय कम्पनियों में तो अंग्रेजी ज्ञान अनिवार्य है ही .देश में अंग्रेजी भाषा में शिछा देने वाले स्कूल-कालेजो की भरमार है और देसी भाषा में शिछा प्राप्त करने वालो के साथ समाज में लगभग अछूत जैसा व्यवहार हो रहा है , धन्य है हमारी राजनीति और समाज . हिंदी बोलने और समझने वाले ८०-९० प्रतिशत भारतीयों को इससे असहजता होती है और समाज में लज्जित होने होने को विवश होना पड़ता है बम्बइया फिल्म वाले भी खाते हिंदी का है और टीवी पर चर्चाओं में ठेट अंग्रेज हो जाते है .
अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाओं का ज्ञान भी होना चाहिए ,लेकिन राष्ट्र और मात्रभाषा हिंदी का गला दबाकर अंग्रेजी को वरीयता दिया जाना इस तथ्य को उजागर करता है की १९४७ में अंग्रेजों के मकडजाल से किसी तरह मुक्त हुए भारतवर्ष की रगों में आज भी अंग्रेजों का ही खून दोड़ रहा है ,विदेशी संस्कृति ही हम ओड़ते-बिछाते है और गर्व से गाते है ” साला में तो साहब बन गया ,ये सूट मेरा देखो ,ये बूट मेरा देखो जैसे छोरा कोई लन्दन का . “

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