Menu
blogid : 2326 postid : 890

मृगतृष्णा !

aaina
aaina
  • 199 Posts
  • 262 Comments

संबंधों के नित नए जाल
हमने सर झुकाए
स्वीकार किये दुःख के
जयमाल !


म्र भर ढोये
लोक-परलोक के संस्कार
थके-मांदे ,अतृप्त स्वप्न
मन का मलाल !


वेद-शास्त्र ,पंडित -पुरोहित
सदा सिर पर सवार
खुशियों का रहा अकाल


पल-पल जीवन घट रिसता
मृगतृष्णा का भ्रम ही दिखता
जीवन भर की प्यास
जी का जंजाल


नथुनों से टकराती
आती जाती श्वांस
झरता नित नूतन जीवन
हे प्रभु ! तू ही सम्हाल


संबंधों के नए-नए जाल
हमने सिर झुकाए
स्वीकार किये
दुःख के जय माल !

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh