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दो-तीन माह के हो-हल्ले के बाद विभिन्न राजनैतिक दलों के सिपहल्सालार फिर अपने -अपने दडबों में लौट गए है .इस बीच दर्जनों सभाओं,रोड शो के दरम्यान बाहें चड़ा चड़ा कर परस्पर गालीगलौज,टीका- टिप्पड़िया,चरित्र हनन के हमले भी किये गए है .यहाँ तक की केंद्र सरकार को समय -समय पर कन्धा देती रही कुछ पार्टीयाँ ने इन चुनावों में नूराकुश्ती का दिखावा भी किया है .मतदाता सदैव भ्रमित रहा है और राजनैतिक दलो की भी यही कोशिश रही है की मतदाता भ्रमित रहे . इन चुनावों में राम देव और अन्ना टीम ने भी अपने गरमा गर्म वक्तव्यों से दाल में तड़का लगाने का काम किया है . उन्होंने उजागर किया की चुनावों में सभी पार्टियों ने लगभग ३०-३५ प्रतिशत आपराधिक छवि वाले बाहुबलियों को टिकट दिए है जिससे प्रबुद्ध मतदाता निराश और हताश है क्योंकि राजनैतिक दल अब भी चाल -चरित्र और चेहरा बदलने को तय्यार नहीं दीखते .
विशेषकर उत्तर प्रदेश के चुनावों में विपछि पार्टियां कांग्रेस से ४० सालो का हिसाब मांग रही हैतो प्रदेश से निर्वासित कांग्रेस विगत २२ सालों में प्रदेश में सत्तासीन दलों के विकास का लेखा-जोखा नहीं दिए जाने के आरोप लगा रही है . बसपा अपने गाँठ के वोट सहेजने में उत्सुक रही तो सपा और कांग्रेस ने मुस्लिम आराछान के झुनझुने के नाम पर मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने का काम किया है . भाजपा ने मुस्लिम आराछान का विरोध कर कथित हिन्दू मतदाता को अपनी और खींचने में पूरी ताकत लगाई है .
खैर ,चुनावों की गहमागहमी समाप्त हो चुकी है और अखबार-मीडिया सट्टे के भावों के जरिये विभिन्न राजनैतिक दलों को मिलने वाली सीटों का गुणाभाग कर रहे है .जो की कुछ प्रत्याशियों की खुशफहमी का विषय है तो अन्य प्रत्याशियों का बीपी कम ज्यादा हो रहा है . जहा तक मतदाता का प्रश्न है तो उसका मानना है की जीते कोई हारेगा मतदाता –क्योंकि मतगड़ना के रुझान आते-आते पछी-विपछि दल परस्पर अवांछित गठजोड़ किये जाने के नए नए समीकरणों का कुत्सित खेल शुरू करेंगे ,निर्दलीय विजयी प्रत्याशियों की घेराबंदी,मंत्री पद का प्रलोभन का टुकड़ा फेंककर येन-केन-प्रकारेण सत्ता हथियाने के प्रयास होंगे ..सांपनाथ या नागनाथ..और एक ही थैली के चट्टे -बट्टे जैसे राजनैतिक दल जब तक चाल-चरित्र और चेहरा नहीं बदलेंगे तब तक उत्तर प्रदेश की तकदीर नहीं बदलने वाली …वैसे भी प्रदेश से छेत्रिय दलों का वर्चस्व टूटना प्राय दुष्कर ही है .
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