- 199 Posts
- 262 Comments
खुदरा बाज़ार में ५१ फीसदी प्रत्यछ विदेशी निवेश पर आनन्-फानन में संसद में बिना विचार-विमर्श किये कानून बनाये जाने पर विपछि दल सरकार की नीयत पर सवाल खड़े कर रही है और विपछि दल एवं सरकार के सहयोगी भी इसका पुरजोर विरोध कर रहे है . वही सरकार खुदरा बाज़ार में ऍफ़-डी-आई से किसान और उपभोक्ताओं के भले के लिए उठाया कदम बता रही है . सरकार का तर्क है की किसान और किराना दुकानों के बीच बिचोलियों की दलाली के कारण महंगाई बड़ रही है वही समुचित भण्डारण के अभाव में अनाज,दाले और सब्जिओं की बर्बादी भी हो रही है . उद्योग जगत भी प्रत्यछ विदेसी निवेश से ख़ासा उत्साहित है और सरकार के पछ में खड़ा दिखाई दे रहा है .
सरकार द्वारा ऍफ़.डी.आई. के पछ में दिए जा रहे तर्क प्रथम द्रस्टिया उचित प्रतीत होते है की समुचित भण्डारण की व्यवस्था न होने के कारण सब्जियां,अन्नाज और दालो की खासी बर्बादी होती है तथा किसान से ओने-पोने में खाद्यान्न और सब्जिया खरीदकर बिचोलिये खासा मुनाफा कमा रहे है ,जिस कारण महंगाई भी बड़ रही है .
स्पस्ट है कि सरकार खाद्यन्न और सब्जियों के उचित भण्डारण की व्यवस्था नहीं कर सकी है और उसका बाज़ार पर कोई नियंत्रण नहीं है . सरकार बाज़ार पर नियंत्रण करने में असमर्थ है ,क़ानून-व्यवस्था नहीं सम्हाल पा रही है , भ्रस्टाचार उन्मूलन में भी असमर्थ है तो सरकार की ज़रुरत कहा रह जाती है ? फिर क्यों करोडो-
अरबो की धनराशि संसद और विधान सभाओं पर खर्च हो रही है ? ये प्रश्न स्वाभाविक है जिनका उत्तर नागरिको को नहीं मिल रहा है .
जहा तक विदेशी निवेश [मुद्रा] की आवश्यकता का प्रश्न है तो सरकार बताये की उत्पादक छेत्रो में विदेशियों को अवसर क्यों नहीं दिया जा रहा है .आजादी के बाद से आज तक उर्जा उत्पादन छेत्र में विदेशी निवेश को आमंत्रित क्यों नहीं किया गया ,अलबत्ता बिजली वितरण में अवश्य देसी-विदेशी कम्पनियों को चूल का न्योता दिया गया है ..यानी सिर्फ मलाई खाने के लिए . दरअसल विदेशी कम्पनिया कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं है वे मात्र मुनाफा कमाने को उत्सुक है .
बिना संसद की आम सहमती के आनन्-फानन में ऍफ़.डी.आई कानून प्रस्तावित किये जाने से पड़े-लिखे नागरिक और विपछि दलों की आशंका उचित ही है एवं सरकार की मंशा पर संदेह भी स्वाभाविक है . अत:देश की संप्रभुता से खिलवाड़ करने की अनुमति किसी को नहीं दी जानी चाहिए तथा इस क़ानून के प्रस्तरों का संसद में गहन विश्लेषण परमावश्यक है . साथ ही छोटे किराना व्यापारियों और प्रभावित होने वाले श्रमिक /किसानो के हितो की गारंटी सुनिश्चित की जानी चाहिए .इस क़ानून के लागू होने की स्थिति में विदेशी किराना दुकानों में कार्य करने वाले कामगारों के वेतन और भविष्य की सुरछा के प्रश्न पर भी अवश्य विचार करना होगा .
Read Comments