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आओ उल्लू हो जाए ..धनलक्ष्मी को मनाये ,जिनकी उल्लू सवारी ,उनकी उतारे आरती ..दरअसल धन लक्ष्मी की सवारी उलूक नाथ है इसलिए मौका देख के उल्लू हो जाने में ही भलाई है ..क्योंकि धन ही मलाई है ,मक्खन है ..इसीलिए जो नहीं है उल्लू ,वे ढक्कन है ..देश में उल्लुओं की संख्या दिनोदिन बढ रही है हर आदमी उल्लू हो जाना चाहता है ..क्योंकि उसका पडोसी भी उल्लू है ,उसके ठाट-बाट है ,कोठी है कार है और जो नहीं है उल्लू वे हम जैसे बेकार है ..नेता-अफसर सिपाही सब उल्लू ही उल्लू है ..तभी तो उनकी कमीज हम जैसे लोगो से लकदक साफ़ है ..ये कहा का इन्साफ है ..हम बरसों से उल्लू हो जाना चाहते है ..धन कमाना चाहते है ..और कुछ दबंग हमको उल्लू नहीं होने देना चाहते ..वे साधू संतो के उपदेश दे रहे है की संतोषी सदा सुखी ..और खुद उल्लू हो गए ..पर उपदेश कुशल बहुतेरे ..
हमको समझ नहीं आ रहा है की धन लक्ष्मी ने अपनी सवारी उल्लू को ही क्यों चुना …शायद जो उल्लू है वो रात को जागता है ..उल्लू बनकर जो धन कमाया है ..कही कम न हो जाए कोई चुरा न ले इसकी चिंता में हर रोज आदमी से उल्लू हो जाना उसकी नियति है ..आदमी आदमी है और उल्लू उल्लू है …आदमी और उल्लू में यही फर्क है उल्लू जैसे आदमियों को तिहाड़ जाना पड़ता है ..और हम आप जैसे पिछड़े लोगो के नसीब में कहा तिहाड़ जैसा सुख-एश्वर्य .बस रोज हाड गला -गला कर दो जून की रोटी की जुगत में लगे रहो . हे भगवन हम उल्लू क्यों ना भये …इस दीवाली पर यही कामना है की हम ना सही हमारी आने वाली पीडी तो उल्लू हो ही जाए जिससे लक्ष्मी सीधी हमारे घर आये …इस बार सब साथी-संगी -रिश्ते-नातेदारों को यही मुबारक सन्देश की जितनी जल्दी हो सब उल्लू हो जाए ..जिससे सुख संमृद्धि आये …
अंत में माँ लक्ष्मी से कामना की हे देवी कब तक इन निशाचरों की सवारी करती रहोगी ..कभी हम जैसे रोज कमाने खाने वाले आदमियों के यहाँ चाय पर ही सही, तुम आओ तो सही …इन खून चूस चूस कर मौज करने वाले स्विस बेंक के काले खातेदार जनतंत्र को धनतंत्र में तब्दील करने वाले लुटेरे नेता-अफसर-सिपाही जैसे उल्लुओ का सजा दो देवी …… इसी प्रार्थना के साथ ….ॐ गणेशाय नम
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