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परतंत्र शेष भारत !

aaina
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64वे स्वतंत्रता दिवस पर देश वासी स्वयं को गोरान्वित अनुभव कर रहे है ..सैकड़ो शहीदों की कुर्बानियों के उपरान्त भारतीयों को दासता की बेड़ियों से मुक्ति और सम्मान पूर्वक जीने के अधिकार के रूप में यह स्वर्णिम दिवस नसीब हुआ था . इन बीते वर्षो में देश ने वाकई चकाचोंध करने वाली तरक्की देखि है ..ओद्योकीकरण ,शहरो का विकास ,आधुनिक संसाधन ,कम्पूटर-संचार क्रान्ति जैसे अनेको उपलब्धिया देश ने हासिल की है ..आज अमेरिका तक हमारे देश के विकास और समृद्धि से अचंभित है ..देश के युवाओं की मेधा ,दछता का उदहारण अपने देशवासियों को दे रहा है . ..किन्तु इस विलासिता ,संमृद्धि की चकाचोंध का दूसरा परिदृश्य निरंतर बढती गरीबी ,बेहाली ,मजबूर ,असहाय तीन चोथाई देशवासियों की दुर्दशा देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है . ..जो २०-२५ रूपया रोज की कमाई पर जीवन यापन करने पर विवश है ..उनके बच्चो को साफ पानी नहीं है , बिजली नहीं है ,शिछा और चिकित्सा मुहैय्या नहीं है …तब लगता है की विकसित होते भारत के विकास और संमृद्धि में देश की बहुत बड़ी आबादी की कोई भागीदारी नहीं है ..उनके लिए इस आजादी का कोई अर्थ नहीं है
तब हम समझ सकते है की हां इस देश में दो भारत है ..एक शाइनिंग इंडिया और दूसरा शेष भारत जहां तक आजादी की सुगंध नहीं पहुंची है . फिर देश का अधिकाँश नागरिक देश की रग रग में फैले भ्रस्टाचार के ज़हर से पीड़ित है ,जिस कारण सरकारी योजनायो ,नीतियों का लाभ नागरिक नहीं उठा पा रहे है ..स्व० राजीव गाँधी, तत्कालीन प्रधान मंत्री ने उस समय स्वीकार किया था की विकास का ८५ पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है ..तब से नदी में कितना पानी बह गया ..हम देख ही रहे है ..जो भी सरकार रही उसने भ्रष्टाचार के इस केंसर को कोई इलाज नहीं किया ,बल्कि बहती गंगा में हाथ धोते रहे …जनता के खून पसीने की कमाई दोनों हाथो से लूटते रहे , काला धन स्विस बेंक में जमा करते रहे ..और देश का लुटा पिटा आम नागरिक इस गुज़रते हुए कारवाँ का गुबार देखता रहा ..रही सही कसर पश्चिम की नक़ल पर वहा की परिस्थितियों के अनुकूल आर्थिक नीतिया देश पर थोप दी .बिना यह सोचे की इस कृषि प्रधान देश के हालात बिलकुल अलग है . पश्चिम में काम करने वाले हाथ नहीं है इसलिए देश के कामकाज – पानी -बिजली ,शिच्छा -चिकित्सा ,को निजी एजेंसियो के हवाले करना विवशता है लेकिन हमारे देश में जहा काम करने वाले हाथो की कोई कमी नहीं है ..यहाँ सारे काम काज देसी -विदेसी सेठ साहूकारों को सोम्पना कहा की बुद्धिमानी है . ..फिर विदेसी पूंजीपति या कम्पनिया यहाँ सेवा करने नहीं अपितु यहाँ से मुनाफा कमा कर अपने देश का खजाना भर रही है . इसीलिए शेष भारत के लिए आज़ादी अभी बाकी है ..जिसके लिए राजनेताओं को नीति और नीयत से काम करना होगा ..तभी देश के अंतिम नागरिक के होंठो तक आजादी गुनगुनायेगी .

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