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समलैंगिक योनाचार एक विकृति !

aaina
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जिस देश में कामदेव को भस्म करने वाले आदिदेव अर्ध नारीश्वर शिव लिंग के स्वरुप में भी

पूज्य हैं ,महा ऋषि वात्सायन का महा काव्य काम सूत्र पूरे विश्व की धरोधर है ,खजुराहो के

मंदिरों में काम कलाओं की भाव भंगिमाएं पत्थरों में उकेरी गयी है -काम से राम तक की

कल्पनाओं को कवि,शायर शब्दों में लय बद्ध करने के काव्य कर्म में संलिप्त है ..फ़कीर -संत

और साधू साधना रत है ,,वहां पाश्चात्य समाज में व्याप्त विकृत्त सम्लेंगिक व्यवहार को

धर्म-दर्शन के प्रणेता भारत वर्ष में कुछ भ्रमित युवाओं द्वारा समर्थन दिया जा रहा है ,जो

धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताओं द्वारा निन्दित है ,अवांछनीय है. सर्वथा प्रकृति नियमो

के विपरीत है . इसके दुश परिणाम एड्स और अन्य कई गंभीर बीमारिया के रूप में

चिन्हित किये गए है .. इस वैचारिक सनक और विकृत संस्कृति को समाज में सहमती

और समर्थन कदापि नहीं मिलना चाहिए, बल्कि क़ानून बनाकर दंडनीय प्राविधान किया

जाए . प्रकृति विरुद्ध सेक्स सम्बन्ध तो सजीव पेड़ पौधे ,कीट पतंगों तक में देखने को नहीं

मिलते है .

दरअसल अतीत से देश में सेक्स का दमन किया गया है ..बुद्धजीवियो द्वारा बार बार कहा

गया है की सेक्स और नैतिक शिछा को स्कूल-कालेजो में अनिवार्य किया जाना चाहिए .

गली गली ठग झोला छाप सेक्स स्पेलिस्ट की दुकानों को प्रतिबंधित करो ,जो युवाओं के

सहज सेक्स जनित प्रश्नों का निवारण करने के बजाय उनको भ्रमित कर आर्थिक और

मनोवैज्ञानिक शोषण कर रहे है . आखिर नैसर्गिक योनाचार के प्रति युवाओं में अरुचि क्यों

हो रही है ..? सम्लेंगिकता की मनोवृत्ति और इसके प्रसार के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिको

और समाजशास्त्रियो को गंभीरता से विचार करना ज़रूरी है ताकि इस अनैतिक

,अप्राकृतिक योन संबंधो के प्रति उत्सुक युवाओं का मार्ग दर्शन किया जा सके .

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