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१३ जुलाई एक अशुभ तारीख …मुबई में ३ भीडभाड वाले स्थानों पर बम विस्फोट ..सेकड़ो
घायल दर्जनों हताहत …फिर देश में हाई अलर्ट ..जगह जगह चेकिंग .अखबार ,टीवी पर
धडाधड सुर्खिया …सबसे पहिले जीवंत दृश्य दिखाने का दावा ……..
आखिर कब तक देश आतताइयो का दंश झेलता रहेगा ..कब तक बूड़े,बच्चे
,जवान और महिलायों के छतविछत शव , खून से रंगी सड़के ,मांस के लोथड़े और
चीत्कार देश की फिजां में गूंजते रहेगे ..
….क्या कहे इसे पुलिस , रछा एजेंसिओं की उदासीनता .. लगभग सवा अरब
की आबादी में सड़क चलते हर नागरिक की तलाशी हो सके ..किस स्कूटर की डिग्गी में
क्या रखा है ,टिफिन या बेग की जांच पड़ताल की जा सके .संभवत यह हो नहीं सकता .तो
क्या इसे नियति मान कर चुप बैठे शवों का तमाशा देखते रहें . ? पुलिस और गुप्तचर
एजेंसियों को अपनी विफलता स्वीकार करनी ही चाहिए ..आखिर करोड़ों- अरबों की
धनराशी अंदरूनी और सीमाओं की सुरछा पर व्यय हो रहा है …
अब समय आ गया हे की पुलिस और सभी सुरछा एजेंसियों के मध्य सामजंस्य
हो और उनको विशेष प्रशिछन दिया जाने के साथ उच्चतर तकनिकी संसाधन मुहय्या
कराये जाएँ .
आश्चर्य होता है की राजनितिक दल ऐसे भीषण विस्फोट में मारे गए नागरिकों के
परिजनों के गम में शामिल होने और सांत्वना देने के बजाय वोटों की राजनीति कर रहे है
और ऊलजुलूल बयानबाजी कर अपना नफा-नुक्सान देख रहे है .इसे पुलिस और न्याय
प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश ही कहा जाएगा . इस अवांछित प्रवृत्ति का संज्ञान
लेकर तत्काल न्यायिक हस्तछेप होना चाहिए .
साथ ही समाज में पुलिस और शरीफ नागरिकों के बीच कैसे सम्बन्ध है ? ..और
होने चाहिए ,इस पर व्यापक विचार विमर्श की आवश्यकता है . ..शरीफ नागरिकों से
पुलिस की सहज मैत्री सम्बन्ध क्यों नहीं हैं ? , शरीफ नागरिक पुलिस से क्यों डरता हे
,खोफ खाता है . ये कहावत क्यों हे की पुलिस की न दोस्ती अच्छी न ही दुश्मनी . इसी का
परिणाम हे की प्राय नागरिक अपने आसपास होने वाले अपराध को जानते हुए भी झंझट
में नहीं पड़ना चाहता .. संदिग्ध व्यक्ति या घटनाओं को देखकर भी टाल जाता हे . सड़क
पर किसी को दुघटना ग्रस्त देखकर सिर्फ ये देखता हे की कोई अपना तो नहीं …यदि नहीं
तो चलता बनता हे ..कौन पुलिस की मुसीबत मोल ले . संभवत ऐसे ही उदाहरणों का
परिणाम हे की आतंकवादी बहुत आसानी से कही भी बम रखकर रफुचक्कर हो जाते हे
और पीछे छोड़ जाते हे ..बर्बादी ,विनाश और विलाप …
गली-.मोहल्ला स्तर पर यदि सजगता रखी जाए तो किसी शहर में कोई आतंकी
वारदात नहीं हो सकती .पहले की तरह सभी निजी या सरकारी स्कूल/कालेज में एन ०सी
०सी जैसे प्रशिछन अनिवार्य होने चाहिए .सिविल डिफेन्स जैसे विभागों की समाज में
प्रभावी भूमिका और सक्रियता जैसे निर्णय पर विचार प्रासंगिक है .तभी मिलजुलकर देश
में पाँव पसारते इस आतंक के दैत्य का सामना किया जा सकता है . .
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