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शिछा -चिकित्सा ,पानी-बिजली ,पेट्रो पदार्थ के बाद अब चीनी भी सरकारी नियंत्रण से
बाहर होने जा रही है ,यानी पूंजीपतियों के मुंह की मिठास और बढ गयी है .अपने खातों में
हेर-फेर कर घाटा दिखाकर जब चाहें चीनी के दाम बढाकर जनता को लूटने का एक और
हथियार पूंजीपतियों के हवाले करने का षड्यंत्र किया जा रहा है . वैसे भी सरकार के
नियंत्रण में अब क्या रह गया है ? अब सरकार के नियंत्रण में सिर्फ जनता के खून-पसीने
की कमाई की लूटपाट और भ्रस्टाचार रह गया है .इस महती उत्तरदायित्व का निर्वाह
वर्षों से सरकार बखूबी कर रही है . आखिर प्रधानमंत्रीजी को विश्व स्तरीय अर्थशास्त्री
का पुरूस्कार यु ही नहीं मिला है . यूनाई टेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका को दरअसल यूनाई टेड
कम्प्नीस ऑफ़ अमेरिका के रूप में जाना जाता है इसीलिए डॉ. मनमोहन सिंह जी
कम्पनियों और पूंजीपतियों की स्वार्थ सिद्धि हेतु नीति निर्धारित .करते रहे है .परिणामत
सरकारी छेत्र के प्रतिष्ठान धडाधड सेठ-साहूकार हजम करते जा हहे है ,जिनसे समय समय
पर मोटा कमीशन मिलते रहने का मार्ग प्रशस्त हुआ है .
इन कथित उदारीकरण की व्यवस्था में नागरिक स्वतंत्र भारत से पूर्व की स्थिति के
अनुसार सेठ-साहुकारो के मकडजाल में उलझकर दिनोदिन आत्महत्या की और अग्रसर
होते जा रहे है . निम्न वर्ग ही नहीं माध्यम वर्ग के माथे की लकीरे घोर भ्रस्टाचार और
निरंतर बढती जा रही महंगाई से गहरी और गहरी होती जा रही है .
birju…..
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