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कालेधन और भ्रस्टाचार के
विरुद्ध ४ जून के आन्दोलन में
सरकारी तंत्र के दमन और
शोषण से लूटे-पिटे रामदेव और
देश में भ्रस्टाचार के तिलिस्म
को तोड़ने हेतु जन लोकपाल
बिल बनाये जाने की मांग पर
संघर्षरत अन्ना के भीष्म व्रत को छल से तोड़कर सरकार भले ही अपनी पीठ ठोंक रही
है ,किन्तु देश में व्याप्त असंतोष की दबी राख में भीतर भीतर अंगारे सुलग
रहे है, जो समय आने पर अग्नि की सुनामी बन सत्ताधीशों के मद और अहंकार को भस्म
कर देगी .. किन्तु रामदेव और अन्ना हजारे के मध्य वैचारिक असहमतियो से आम जनता
दिग्भ्रमित है .इस द्वन्द का फाइदा उठाकर सरकार ने रामदेव के विरुद्ध षड़यंत्र रचकर
घेराबदी के कुप्रयास शुरु कर दिए है .साथ ही अन्ना के संघर्ष की धार कुंद करने के भी संकेत
मिल ही रहे है . भ्रस्टाचार ,महंगाई का तांडव नृत्य और क़ानून व्यवस्था की नकेल हाथ से
जाती देख यूपीए सरकार हांफती मुद्रा में है . संभवत इसी कारण प्रधानमंत्री जी मीडिया से
संवाद स्थापित कर अपनी स्थिति स्पष्ट करने को विवश हुए है . इस कवायद में वे कहा तक
सफल होते है ,समय बताएगा .
आखिर जनलोकपाल बिल पर सरकार न-नुकुर क्यों कर रही है ,जबकि लोकपाल बिल
बनाये जाने का प्रस्ताव वर्षो से लंबित है .विपछि दल हमेशा से प्रधानमंत्री और मुख्य
न्यायाधीश को लोकपाल के दायरे में रखने के हिमायती है तो वर्तमान सरकार इस प्रस्ताव
को संसदीय परंपरा के विरुद्ध बता रही है . इसे समान्तर सरकार की अवधारणा घोषित कर
येन-केन-प्रकारेण इस ज्वलंत मुद्दे को ठन्डे बस्ते में डालने को तत्पर है . सरकार के
अनुसार ये स्वयंभू सिविल सोसायटी है और समूचे देश का ओपचारिक रूप से
प्रतिनिधित्व नहीं है . सरकार की कुटिल मंशा है की लोकपाल बिल ,कालेधन की
वापिसी और भ्रस्टाचार के विरुद्ध शुरू हुई इस एतिहासिक मुहीम के सम्बन्ध में आम
जनता में भ्रम उत्पन्न किया जाए .
ऐसा लगता है की सरकार शुतुरमुर्ग की तरह देश की वास्तविकताओ से मुहं छिपा रही है
,जबकि जनसंचार क्रान्ति के हथियार – फेस बुक ,ट्विट्टर जैसी बेब साइटों पर देश * एक*
हो रहा है और सरकार के विरुद्ध व्यापक जनमत तैयार हो गया है .इन परिस्थितियों की
सरकार को अनदेखी नहीं करनी चाहिए .सत्ता मद और अहंकार में चूर सरकार को समय
रहते मंथन करना होगा ,यही बुद्धिमानी है .
-बिरजू ,आगरा
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