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बाबा राम की लंगोटी सरकार
खींच ही चुकी है बल्कि
निचोड़कर मिडिया की अरगनी
पर सुखा भी दी है ,अब अन्ना
जी के घुटन्ने की डोर सरकार के
हाथ में है और सरकारी प्रवक्ता
उसी *अरगनी* पर झूल झूल
कर करतब दिखा रहे है .
मिडिया की सुर्खिया है * अन्ना को अनशन नहीं करने देगी सरकार *कालेधन और
भ्रस्टाचार के विरुद्ध मिडिया और जनमानस में उठे ज्वार की भावनाओं का तना तम्बू
बहु-बेटी की विदाई के अलसाए माहोल की तरह लगभग अप्रासंगिक हुआ लग रहा है .
आमरण अनशन के समय रामलीला मैदान से महिला वस्त्रो में फरार हुए
हठयोगी चौधे दिन ही उत्तराखंड के अस्पताल पहुँच गए . उस वक्त उत्तराखंड सरकार के
मुताबिक बाबा * कोमा* में जा सकते थे तो बाबा का त्रियाहठ संत्समाज ने मोसमी का रस
पिलाकर तुडवाया, किन्तु बाबा का बीबीसी टाइप स्टैण्डर्ड सत्याग्रह निश्चित ही *कोमा* में
जा पहुंचा है .
.
सरकार और विपछि दल के बीच खिंचे अखाड़े में ढोल तांसे बजते हुए नूर-कुश्ती चालू आहे
. सरकारी पहलवान हीर-रांझा फिलिम की स्टाइल में भ्रस्टाचार और अनीतियो के समर्थन
में जोर शोर से ताल ठोंक रहे है गा रहे है * जिसने पाप ना किया हो वो पहला पत्थर मारे *
लो कर लो बात , ये तो सबको जानना ही चाहिए राजनीति के हमाम में सब नंगे है ..अरे
भाई हमाम में नंगा रहना ही होता है …कोई शक ?
—-birju,agra [up]
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