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हमारे . शास्त्र,पुराण और संस्कृति के अनुरूप कण कण में इश्वर दर्शन करने की परम्परा
है . वनस्पति यहाँ तक सर्प तक की पूजा होती है . शंकराचार्य * अहम् ब्रह्मास्मि * का उद्घोष करते है
और कृष्ण गीता में कहते है मेरी शरण में आओ में सर्व व्यापी हु . इसी गीता उपदेश के कारण कृष्ण
योगेश्वर और भगवान् के रूप में प्रतिष्ठित हुए . इससे पूर्व तो गोपिकाओ के वस्त्र हरण और माखनचोर
के रूप में साधारण व्यक्ति के रूप में ही उनकी ख्याति रही ..
महात्मा कबीर कहते है * ज्यो तिलमाही तेल है ज्यो चकमक में आग , तेरा साईं तुज्झ में
जाग सके तो जाग ** इश्वर हर दिल में निवास करता है ..जो जागृत अवस्था को प्राप्त है वह सूफी
फकीरों के तरह निश्चित ही नाच उठेगा * न पल बिछड़े पिया हमसे ना हम बिछड़े पियारे से , हमारा
यार है हम में हमन फिर बेकरारी क्या .*
यदि सत्य साईं द्वारा किये गए चमत्कारों को मात्र जादू कहकर साईं की महत्ता को कमतर
आंक रहे है तो उनके द्वारा अपने ग्राम ही नहीं आसपास के दर्जनों ग्रामो के विकास.,पीने के पानी की
व्यवस्था . विश्वस्तरीय चिकित्सालयों, शिछां संस्थानों की स्थापना जैसे लोक सेवा के कार्यो का श्रेय
सत्य साईं को दिया ही जाना चाहिए ,जो उनको मानव से महामानव की अग्र पंक्ति में स्थापित करता
है –निसंदेह सत्य साईं को अवतार और भगवान् के रूप में महिमामंडित किया ही जाना चाहिए .
जबकि ऐसे कार्यो का उत्तर दायित्व प्रदेश और केंद्र सरकारों का है और हम स्वयं छोटी छोटी नागरिक
समस्यायों के लिए सरकार और प्रशासन को कोसते रहते है .
भारत ही नहीं समूचे विश्व को सेवा और प्रेम का सन्देश देने वाले सत्य साईं के परिनिर्वाण की बेला पर
शत शत नमन !
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