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हंगामा है क्यों बरपा ?

aaina
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आखिर प्रस्तावित जन लोकपाल बिल के कारण सत्ता गलियारों में आतंक क्यों मचा हुआ है ?

ऊलजुलूल एवं अंट शंट बयानबाजी कर इस प्रक्रिया को क्यों अवरुद्ध किया जा रहा है ? परदे के

पीछे कोन है जनता भलीभांति अंदाजा लगा रही है .


विचारणीय है की विधायिका,न्यायपालिका और कार्यपालिका के कार्यकलापो पर पहरेदार की

भूमिका का क्या औचित्य है ? जबकि संसदीय तंत्र में केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त जैसी कई जांच

एजेंसिया अस्तित्व में है तो प्रकरण विशेष में संसद की सहमती से संयक्त जांच समितियों के

गठन का प्राविधान भी है .


विगत ४२ वर्षो से लोकपाल बिल विचाराधीन रहा है अर्थात आज़ादी के २०-२५ सालो के

उपरान्त ही संसदीय तंत्र की सत्यनिष्ठा संधिग्ध हो गयी थी और राजनीति में नीतिक-

चारित्रिक मूल्यों का अवमूल्यन उजागर होने लगा था . परिणामत यह प्रदुषण न्यायपालिका

और कार्यपालिका के रोम रोम से रिसने लगा ,जिससे देश का आम नागरिक रोजी-रोटी-

शिछ०चिकित्स जैसी आवश्यकताओं के मकडजाल में उलझ कर रह गया . विगत वर्षो में

नित लाखो-करोणों के घोटालो के खुलासे ने उसके खुले घावो पर नमक छिड़कने का काम

किया और उसका विश्वास मेरा भारत महान की अवधारणा से डिगने लगा है . .


अब जबकि प्रधानमंत्रीजी कहते है की भ्रष्टाचार बर्दाश्त के बाहर हो गया है तो निश्चित समझना

चाहिए की मामला अति गंभीर है …यानी पीर पर्वत सी हुई अब तो पिघलनी चाहिए इस

हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए .


किन्तु यछ प्रश्न यही है की संविधान में इतने नियम-क़ानून के रहते हुए भी मगरमच्छ

भ्रस्टाचारियो के कालर तक कोई क़ानून नहीं पहुँच सका है ..हां जब भी जाल डाले जाते है तो

छोटी-मोटी मछलिय पकड़कर अखबारों की सुर्खियों बन जाते है .


इस देश का संकट नैतिक -चारित्रिक है ,जिसका इलाज किसी क़ानून द्वारा किया जा सकेगा

इसमें संदेह है .इसका निवारण जन जन में आत्मानुशासन जागृत कर ही किया जा सकता है

लगता है हमारी शिछा संस्थान और शिछक इस कार्य में नितांत असफल रहे है . देशमे चुनाव

सुधारों को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाना आवश्यक है ताकि शिछित-सुसंस्कृत जन

प्रतिनिधि उच्च सदनों में चयनित हो सके . विभिन्न राजनीतिक दलों के कोष के आडिट का

प्राविधान पर विचार भी प्रसांगिक है ताकि पूंजीपतियों से चंदा लेने वाले दल सरकार में आकर

पूंजीपतियों के हाथ के खिलौना न बन सके . जैसा की आजतक होता रहा है .


राजनीति-न्याय और समाज में सब भ्रष्ट नहीं है –बुराई अधिक दिखाई पड़ती है . नीतिवान-

चरित्रवान और इमानदार नागरिको को महिमामंडित और प्रोत्साहित किया जाय जो समाज

में प्रेरणास्रोत बनेंगे और आदर्श समाज की स्थापना हो सकेगी . मीडिया इस अभियान में

महती भूमिका निर्वाह कर सकता है . शासन-प्रशासन स्तर से भी अतिरिक्त ध्यानाकर्षण

प्रदान कर इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने होंगे .

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