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बेलगाम फिल्मे और गैरजिम्मेदार सेंसर बोर्ड !

aaina
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अभी जेसिका हत्याकांड पर फिल्म देखी..रानी मुखर्जी के मुंह से

भद्दा और गन्दा संवाद सुनकर पीड़ा हुई और भारतीय सिनेमा के तीरंदाजों की अक्ल पर

तरस आया और गुस्सा भी ..जरा इन फिल्मकारों से पूछा जाना चाहिए की इस तरह के

संवाद अपने बच्चो-बहिन बेटियों के साथ सुनना पसंद करेंगे ..जबाब निश्चित ही * कदापि

नहीं * होगा .


इन बीते वर्षों में भारतीय सिनेमा लगातार बेलगाम और गैर जिम्मेदार

होता गया है ..जिनकी जवाबदारी है वे लोग जेबों में नोट और कानो में बांस डालकर बैठे है ..

सच्चाई दिखाने के तर्क के बहाने फिल्मों में माँ-बहिन की भद्दी और बहुत गन्दी गालियों का

फेशन चल पड़ा है ..कुछ फिल्मो में तो गालियों की इतनी भरमार है की शर्म आती है .

19 ७५ से पहले मुझे याद नहीं आता कभी किसी फिल्म में माँ-बहिन की

गालियों भरे संवाद देखे -सुने हो . एक गरिमा थी पहिनने-ओड़ने का सलीका था .

.परिवार-समाज को शिछित -सुसंस्कृत करने का महती उत्तरदायित्व निर्वहन किया जा

रहा था . ..और आज सूचना मंत्रालय -सेंसर बोर्ड कुछ कर भी रहा है ..दिखाई नहीं देता .

बॉक्स ऑफिस की चिंता और अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की होड़ में नायिका के कम

से कमतर होते जा रहे वस्त्र..उत्तेजक भाव-भंगिमाए और ऊलजलूल संवादों भरी पटकथा

सिने उपभोक्ताओं को परसी जा रही है .शादी के अवसर पर स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला *

खोईया नृत्य संगीत * प्रोग्राम जो मर्दों के लिए नहीं था …अब फिल्मो ने आम दृश्य रहते हे

..नंगनाच के दृश्य-नृत्य संगीत की फिल्मो को कठोरता के साथ किशोरों के लिए वर्जित

होना चाहिए और इन सी ग्रेड की फिल्मो के किसी चेन्नल पर ना प्रसारित किये जाने के

नियम आवश्यक है ही ….अन्यथा घरो में बच्चे-बच्चे की जुबान पर इसी तरह के संवाद

होंगे …तेरी …फट जाएगी …

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