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सच में श्रीमान शर्मा जी के पशु प्रेम को देखकर ह्रदय गदगद हो गया -उन्होंने अपने टोमी के लिए अपने वृद्ध पिता श्री को घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया .जबकि पिताश्री ने इतना भर कहा था की बेटे टोमी कटखना हो गया
है ,पूरे घर में इसकी बदबू रहती है -बैठने उठने के स्थानों पर इसके बाल चिपके रहते है ..कम से कम इसे घर से बाहर रखने का इंतजाम कर दो श्रीमान शर्माजी को अपने पिताश्री के वचन नहीं सुहाए और उन्होंने तपाक से कह दिया आपका दिमाग ठिकाने नहीं है क्या ? यदि आपको टौमी से कोई आपत्ति है तो आप कही और चले जाए ,टौमी तो यही रहेगा ..इसी घर में . श्रीमान शर्माजी ,उनकी पत्नी प्रिया और बालक चिंटू तीनो अपने प्रिय कुत्ते के पछ में हो गए और वृद्ध पिताश्री आँखों में आंसू लिए छड़ी टेकते हुए घर से निष्काषित हो गए . जेब में अपनी पेंशन . की किताब लिए छत की तलाश में हे .
इसे कहते हे प्रगतिशील समाज और उसमे पनपते असहिष्णु संस्कार,जो सिर्फ अपनी परछाई तक सीमित हे…आगे ना तो उन्हें देखने की फुर्सत है ना ही सहनशक्ति . श्रवण कुमार की कहानिया वर्तमान युग में अप्रसांगिक है .
धर्म-शास्त्र,समाजशास्त्र,इतिहास-पुराण की जर्जर पन्नो में निहित आदर्श,चारित्र नैतिक मूल्यों को समय के साथ दीमक चाट गयी है और निर्मम , असंवेदनशील ,सभ्यता विकसित हो रही है .
भले ही श्रीमान शर्माजी के दुष्कृत्य पर लोग नाक -भों सिकोड़ रहे है किन्तु अपने गिरेबा में भी देखने का समय है की हम परिवार में कैसे संस्कार विकसित कर रहे है . संयुक्त परिवारों के निरंतर विघटन होने से समाज में भय, असंतोष,वैमनस्य और विकृतिया उत्पन्न हो रही है ,जो समाज के ताने-बाने को तहस-नहस कर रही है .
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