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यहाँ दरख्तों के साए में धूप लगती है

aaina
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राम नाम की लूट है ,लूटी जाय सो लूट .अंत काल पछिताएय्गो जब प्राण जायेंगे छूट ..देश के संत महात्माओ के दिखाए रास्ते पर नेता अफसर ,सेठ साहूकार सब लूट काण्ड में व्यस्त और मस्त है बिना किसी की परवाह किये हुए ,क्योंकि यदि इस लूट में शामिल नहीं हुए तो अंत काल में व्यर्थ ही पछताना होगा .यद्यपि आजादी पूर्व अंग्रेज भी देश को दोनों हाथो से लूट कर धर्म कमा रहे थे.


लगता है की हमारे देश के दर्शन .ऋषि मुनियों के उपदेशो से वे भी प्रभावित रहे . अंगेज चले गए औलादे छोड़ गए . उनके कर्मकांड की महती परम्परा को पूरी निष्ठां से उनकी अवैध ओलादे निर्वाह कर रही है .
वैसे तो इस देश में लूट पर किसी ने आपत्ति नहीं की यदि कभी कभार इन
मेधावियो पर किसी की बुरी नज़र पड़ भी गयी तो माखनचोर की तरह अनजान और भोले भंडारी बनकर याचना कर बैठे की ” मैया मोरी में नहीं माखन खायो ,ग्वाल बाल सबे मिल मेरे मुख लपटायो “” ..और माता यशोदा जैसे मातृत्व भाव से देश उनके भोलेपन के लिए नतमस्तक हो गया.


तभी आजादी के बाद से किसी भी बड़े भ्रष्ट के खिलाफ कठोर कार्यवाही नहीं हुई …हां दस बीस सो रुपयों के मामूली दोषियों पर अवश्य कानूनी कार्यवाही हुई तब जनता ने हलके हलके तालिया भी बजाई ..लेकिन “समरथ को नहीं दोष गुसाई ” में निहित भावना को समझकर भ्रस्टाचार में लिप्त बड़े मगरमछो के आगे किसी का वश नहीं . ..अभी मा ० उच्चतम न्यायलय में सरकार की और से तर्क भी दिया गया है ..की अगर सबकी जन्मकुंडली देखकर किसी पद पर नियुक्ति की जानी है तो किसी पद पर भी नियुक्ति संभव नहीं हो सकती ….अर्थात हमारे देश में कोई दूध का धुला नहीं है .तब तो .हमको सगर्व कहना चाहिए हम सब चोर है …


एक नाटक का संवाद भी है की जो लोग क़ानून बनाते है उन पर कोई क़ानून लागू
नहीं होता .. सच भी है अगर राजा जैसे नेता लोगो के खिलाफ कानूनी कार्यवाही होगी तो इस अवधारणा का क्या होगा की राजा इश्वर है …और इश्वर लोगो की और कौन ऊँगली उठाएगा …ओह पाप ..महा पाप ..


भले ही अखबार इस बारे में नित छापते रहे .दृश्य मीडिया स्टिंग ओपरेशन करता रहे
..जिन लोगो का एकमात्र खेल ही ” घोटाला “” है वह पूरी शानो शौकत से ” घोटाला -घोटाला ” खेलते रहेंगे . एक दस करोड़ का करता है तो प्रतिस्पर्धा में दूसरा सो करोड़ का घोटाला करके मर्दानगी दिखा देता है -लो कर लो बात, है कोई माई का लाल कहता हुआ तुरंत ताल ठोक देता है .

कलमबंद करते हुए दुष्यंत की पंक्तिया स्मरण हो रही है …..

यहाँ दरख्तों के साए में धूप लगती है ….

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