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एक समृद्ध 150 एकड़ में बसा खुशाली गाव ,जिसमे लगभग डेड हजार विभिन्न
धर्म ,वर्ग, जातियों के परिवार रहते है . कुछ पक्के ,अधपक्के मकानों के साथ आकर्षक
झोपडिया है ,सकरी गलिय भी साफ़ सुथरी है . जूनियर हईस्कूल,डिस्पेंसरी खेलकूद के
मैदान है . जो दर्शाते है की यहाँ सभी लोग मिलजुलकर आनंदमय जीवन व्यतीत कर
रहे है .
अचानक खुशाली गाँव की खुशियों को किसी की बुरी नज़र लग जाती
है . नगर से मात्र १० किमी दूरी पर बसे गाँव की आकर्षक लोकेशन प्रभुत्व संपन्न
बिल्डर हरनाम सिंह को भा गयी . वह अपने आठवे प्रोजेक्ट के तोर पर अपनी
स्वर्गवासी पत्नी के नाम **नीहारिका एस्टेट ** के रूप में वृहत आवासीय एवं वाणिज्यिक
काम्प्लेक्स बनाना चाहता है . जिसके लिए इस सड़क किनारे 15 एकड़ भूमि के लिए
साम दंड भेद की नीति अपनाकर किसानो पर भूमि बेचने के लिए दबाव बना रहा है .
कुछेक किसान उसकी साजिश का शिकार भी हो जाते है एवं अपनी भूमि बेचने को
सहमत हो जाते है . हरनाम सिंह के इस नगर में कई शोपिंग कोम्प्लेक्स और
आवासीय कोलोनियाहाई तो शराब के ठेके ,जूआघर भी चल रहे है . हरनाम सिंह के
गुंडों द्वारा आयेदिन किसानो को धमकाने ,डराने और प्रलोभन दिए जाने से खुशाली
गाव के नागरिक दुखी है ,हर रोज़ चोपाल लगती है और एकजुट होकर इस
दमन ,शोषण के विरुद्ध आवाज उठती है .इस संगर्ष की अगुवाई रिटायर्ड अध्यापक
सिद्धार्थ बाबु कर रहे है और हरनाम सिंह द्वारा भेजे गुंडों ,नगर पालिका के अफसरों
तथा पुलिस का सामना कर रहे है .साथ ही जिन कुछ किसानो को हरनाम सिंह ने
बरगलाकर अपने पछ में किया है उनको सिद्धार्थ बाबु समझ बुझा रहे है की जो उपजाऊ
जमीन उनको रोटी रोजी दे रही है पुरखो की इस भूमि को नहीं बेचना चाहिए
.एक दिन सिद्धार्थ बाबू कुछ किसानो के साथ अपने पूर्व परिचित
विधायक रामानन्दजी के पास जाकर व्यथा सुनाते है .किसानो के हित के लिए
रामानंद जी से मदद मांगते है .इस न्यायोचित संघर्ष के लिए रामानंद जी
सहर्ष सिद्धार्थ बाबु को आश्वस्त करते है की कोई भी क़ानून विरुद्ध किसानो की जमीन
नहीं ले सकता है .इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों से मिलजुलकर हरनाम सिंह के
खिलाफ कार्यवाही की माग की जाती है .आसपास के कई गाँव इस संघर्ष में साथ हो
जाते है ..हरनाम सिंग को अंदाजा नहीं था की किसानो की इस मुहीम में रामानंद जी
भी कूद पड़ेंगे . उसने कभी भी हार नहीं मानी है …लेकिन किसानो के आन्दोलन के
कारण उसे अपने स्वप्निल प्रोजेक्ट से हाथ खींचने पड़ते है .
रामानंद जी के विरुद्ध हरनाम सिंह षड़यंत्र रचने लगता है . हरनाम
सिंह को परेशान देखकर उनका बिगडेल बेटा रमेश प्रताप दुखी होता है और
रामानंद जी के बेटे आकाश को अपनी साजिश का मोहरा बनाता है …अपने
और कुछ लोगो की बिमा पालिसी आकाश से कराकर दोस्ती गाँठ लेता
है . रोज़ मंहगे होटलों में आकाश को ले जाता है ..उसकी सचिव रीना
आकाश को प्यार के जाल में फंसा लेती है .आयेदिन आकाश के साथ रीना
होटल ,स्वीमिंग पूल आदि जगहों पर मोजमस्ती करती दिखाई पड़ती है .
कामना को आकाश की इन कारगुजारियो को कोई पता नहीं है वह
अपने स्वसुर के साथ सामजिक सेवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हाथ बटाने लगती
है .रामानंद जी भी लिखा पड़ी के कामो में कामना पर आश्रित हो जाते है . किन्तु
रोज देर रात शराब के नशे में धुत्त होकर लोटने पर कामना बेहद दुखी
है . एकदिन सुबह सुबह कामना अपनी सासु मा से शिकायत करती है
गायत्रीदेवी – समझ नहीं आ रहा है की शादी के बाद आकाश को क्या
हो गया है ..शराब को हाथ ना लगाने वाला हमारा बेटा
आखिर कैसे होटलबाजी करने लगा है ….बेटी तुमने उससे
बात नहीं की ? उसके पिता की अपनी प्रतिष्ठा है उनको ये सब
पता चलेगा तो …
आकाश -/सीडियो से उतरते हुए / क्या हुआ माँ …पिताजी को क्या पता
लगेगा …मेरे ख़याल में कामना बेगम ने कुछ शिकायत की है …क्यों
कामना /कामना तेजी से अन्दर चली जाती है /
गायत्री देवी -क्यों रे क्या सुन रही हु …तू शराब पीने लगा
है …होटलबाजी ..
आकाश – /चाय का कप उठाते हुए /अरे माँ अब में कोई दूध पीता बच्चा
नहीं हु ..और फिर नोकरी काम धंदे में पार्टियों के साथ थोडा बहुत
ये सब करना पड़ता है ..इसी को मेट्रो कल्चेर कहते है ..नहीं तो
हो गया बिजनेस ..आजकल सभ्य समाज की ये सब जरुरत
है …पार्टी vaarti …
गायत्री देवी – में कुछ नहीं सुनना चाहती ..अगर बिजनेस में या मेट्रो
कल्चेर के नाम पर ये सब जरुरी है तो आज से सब बंद ..कैसा
सभ्य समाज बन रहा है …ताज्जुब है
आकाश – मेरी भोली माँ ..जमाने के साथ चलना पड़ता है नहीं तो लोग
कहेंगे बोदमदास
गायत्री देवी – इसका मतलब जितने लोग नोकरी ,काम धंदा कर रहे है
सब लोग …
आकाश – माँ तू समझती तो है नहीं ….अच्छा ठीक है ख़याल
रखूँगा …अब तो ठीक …अब तो नाराज नहीं है ना …..लगता है
आपकी बहु ने खूब कान भरे है सासुमा के …
गायत्री देवी – ये लड़के खबरदार मेरी बहु के बारे में कुछ उल्टा
सीधा कहा तो …
आकाश – अच्छा बाबा ….एक और एक ग्यारह हो गयी है आप
लोग ….चलता हु ऑफिस को देर हो जायेगी …..इ कामना मेरे
कपडे निकाल देना ……./अपने कमरे में चला जाता है /
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सोचते विचारते एकाएक कामना की तन्द्रा
टूटती है ..घडी ढाई बजा रही है . कामना के चेहरे पर पसीने की
बूंदे छल छला रही है .वह यही सोच रही है आखिर तुषार चाहता क्या
है ..इतने दिनों बाद उसका फोन ….रामलीला मैदान पर क्यों
बुलाया है . हालांकि कामना को तुषार पर पूरा विश्वास है की वह उसे
कोई नुक्सान नहीं पहुंचाएगा वो एसा नहीं है . भले ही आकाश के शक
और अपने सुखी वैवाहिक जीवन के कारण कामना तुषार को भुला
बैठी है ..लेकिन उसे अछि तरह पता है तुषार साधारण और
बचकाना इंसान नहीं है . फिर भी….कामना का मन किसी अज्ञात
अनहोनी के कारण आशंकित हो उठा …..
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क्रमश ……….जारी ….
विद्वान् दोस्तों और सुधि पाठको से गुजारिश की कृपया अपने विचारों से अवश्य अवगत कराये …मुझे प्रेरित करे ………..ब्रजमोहन शरद
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