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वो कौन थी ,जिसकी आहट रात को में महसूस कर रहा था ..उसके पेरो में बंधे
घुन्गरुओ के स्वर अभी भी मेरे कानो में गूँज रहे है …ऐसा कभी नहीं हुआ . मेरी दिल
की धड़कने तेज हो गयी थी ..कमरे में अपने अकेलेपन से जिंदगी में पहली बार में डर
गया ..आँखे फाड़ फाड़ कर अँधेरे में देखने की कोशिश करता रहा . इतनी हिम्मत
नही कर पा रहा था की लाईट जला लू . घुंगरू के स्वर कभी तेज कभी मद्धिम हो
जाते थे ..अँधेरे में अपने मोबाइल को भी नहीं ढूंढ पा रहा था .की किसी को फोन कर
सकू . में लाख अपने डर पर काबू पाने की कोशिश करता रहा लेकिन —
कौन हो सकता है ..अपनी पदाई से मुझे किसी लड़की की और
देखने की फुर्सत कहा थी …और मेरे जीवन में अभी तक किसी लड़की ने प्रवेश भी
नहीं कियाथा ,में सपने में भी इस बारे में नहीं सोचा करता था …फिर .
. मेरा गला प्यास से चटखने लगा था ..संभवत डर के
कारण . ..मेने सांस रोककर घुंगरू के स्वर की दिशा महसूस करने की कोशिश
की …लेकिन स्वर मेरे चारो और से आ रहे थे …मेने चिकौटी काटकर देखा कही
स्वप्न तो नहीं ..लेकिन नहीं में पूरी तरह जाग्रत था ..अब तो मेरे नथुनों में इत्र जैसी
सुगंध भी आ रही थी . सच में और डर गया ..मुझे लगा की आज किसी भूतनी से
पाला पड़ गया ..कही किसी पूर्व जन्म का चक्कर तो नहीं ..फिल्मो की तरह ,ऐसा तो
फिल्मो ही होता है …लेकिन फिल्मो में तो स्त्री के गाने के स्वर भी गूंजते है ….और
नायक जैसे नींद में चलते हुए गीत के स्वर की दिशा में अग्रसर होता है …में भी
किसी स्त्री स्वर में किसी गाने के स्वर सुनने की कोशिश करता रहा …लेकिन
नहीं ,,कोई गीत का स्वर नहीं …
लगता है भूतनी को गाना वाना नहीं आता या उसने हिंदी फिल्मे
नहीं देखी . साहस करके हनुमान जी का नाम लेकर में उठा और बिजली जलाई ..मुझे
आश्चर्य हुआ ..कोई नहीं है …फिर घुंगरू के स्वर कहा से आ रहे थे …अब ये स्वर भी
गायब ….मेने मेज पर रखे पेकेट से सिगरेट निकाल कर सुलगाई और गहरे -गहरे कई
कश खींच गया …टाइम देखा रात के ३ बज रहे है …धीरे धीरे मेने अपने दर पर
काबू पा लिया और और लाईट जलाकर ही सोने की कोशिश करने लगा ….जैसे ही
मेरी आँख लगी फिर से वही घुन्गरुओ के स्वर ..में फिर उठ बैठा .हिम्मत करके
अपने कमरे की बाहर खुलने वाली खिड़की धीरे से खोली -खेतों के लगभग बीच में
बने हुए मकान में अँधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था …..खिड़की खुलते ही
मकान मालिका उस बुद्दी ओरत के खांसने के स्वर के अलावा कुछ भी सुनाई नहीं दे
रहा था ….बाकी सिर्फ भाय भाय करते हुआ अँधेरा …कही दूर से जंगली सियारों के
रोने से स्वर स्थिति को और भयावह बना रहे थे . में पसीने पसीने हो गया ….मुझे
लगा के ये डर ,ये अँधेरा मुझे दबोच लेगा ..अनायास में कमरे का दरवाजा खोलकर
लगभग भागता हुआ मकान के कोने में बने मकान मालिका बुडिया के कमरे में प्रविष्ट
हुआ और उसके पायताने बैठ गया और अपनी तेज साँसों पर नियंत्रण पाने की कोशिश
करने लगा .
तभी जर्जर देह वाली बुडिया खांसते खांसते बोली –क्या बात
है बेटा-
मेने कहा –अम्मा मेरे कमरे में घुन्ग्रुओं की आवाजे आ रही है–
अरे वो ससुरी महुआ ….खांसते खांसते बुडिया के स्वर बीच में ही रुक गए ….
–महुआ ..कौन ? में और डर गया ..
— पहिले मेरे इकलौते लाल को खा गयी ,फिर खुद कूए में कूद
गयी …बुडिया खांसी के कारण जैसे तैसे बोली ..
में बुरी तरह घबडा गया ….में अपने घर से दूर इंटर का
इम्तहान देने इस मकान में किराए पर आया था …मेने जैसे तैसे इम्तहान के बचे
तीन दिन और काटे ..रात को बिजली जलाकर जागता रहा …नींद तो नहीं आई ——
इम्तहान के बाद घर लौट आया लेकिन इतने सालो बाद भी घुन्गरुओ की
आवाज , इत्र की सुगंध का रहस्य मेरे ज़ेहन में बरकरार है . हालांकि में भूत प्रेत जैसे
मान्यताओं का घोर विरोधी हु ..फिर भी …
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