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दरअसल टुच्चे ,दकियानूसी और पिछड़े लोगों को सरकार की हर नीतियों पर बवाल करने की आदत सी हो गयी है खुलिअर्थ व्यवस्था के ज़माने में ये मूर्ख ऊंचे लोग ऊंची पसंद के मायने भी नहीं समझते .धत्त ! मंहगाई मंहगाई चिल्लाने से क्या होगा क्या कम हो जायेगी . अरे खुद को कर बुलंद इतना की खुदा खुद पूंछे की बता तेरी रजा क्या है . अरे भैया लोग अपनी कमाई बढाओ ,संसाधन बढाओ . कुछ काम करो कुछ काम करो जग में रह कर कुछ नाम करो . भाई मेरे किसी नेताजी के तलवे चाटकर सीमेंट ,राशन अगिरह-वगैरह के लाइसेंस लो . अब तो और भी कई आसान रास्ते खुल गए है तेज़ रफ़्तार की बाईक खरीदो , हर दुसरे रोज़ रास्ते चलते बहन बेटियों की चैन खींचो ,रात को किसी थ्री फाइव स्टार होटल में बीअर दारु खींचो मुर्गे तोड़ो ऐश करो और क्या . ध्यान रखो रोने वालो के साथ कोई नहीं आता हंसने वालो के साथ दोस्तों की भीड़ होती है .
इसमें भी दिक्कत हो तो कट्टा रिवाल्वर काले बाज़ार से खरीदो राहजनी करो किसी बैंक के आसपास निगाह जमाओ आसामी देखकर नली कनपटी पर और ब्रीफकेस छीनकर फुर्र हो जाओ फिर ऐश . ये भी न बने तो चले जाओ दतेवाडा ..हो जाओ शामिल उनकी सेना में रोटी रोज़ी का झंझट ख़त्म . ..और भैया मेरे कुछ भी न कर सको ,शराफत का रोग हो तो बाल बच्चो समेत आसपास के किसी कूए पोखर में कूद जाओ .
लोग समझते तो है नहीं की हमारी सरकारे किसी अवतरण के लिए माहोल तैयार कर रही है …यदा यदा ही धर्मस्य …..का श्लोक याद है की नहीं . भैया जब तक भारत में धार्मिक लोग ग्लानी से नहीं भर जायेंगे तब तक प्रभु का अवतार नहीं होने वाला …लाख चिल्लाओ ..मंदिरों में अगरबत्ती दिखाओ कुछ नहीं होने वाला …हमारी सरकारे भरसक प्रयत्न कर रही है की भगवान् श्री कृष्ण अवतार ले. इसलिए जितना हो सकता है अपने स्तर से प्रयास कर रही है ….हर बार लगातार ….हर बार सरकार को लगता है की भगवान् द्वारा निर्धारित की गयी धर्म की हानि हो गयी है .किन्तु हर बार कुछ कमी रह जाती है ….फिर गरीब के पेट पर एक लात और …..लेकिन ताज्जुब है जनता ग्लानी से त्राहि त्राहि अब भी नहीं कर रही है .
गोबरदास की समझ में नहीं आता की किरोसिन ,डीजल और रसोइगेस पर बड़ी हुई मंहगाई की भरपाई सरकार सिगरेट , शराब के दाम बढाकर क्यों नहीं करती ?क्यों 1000-1200 माहवार कमाने वाले व्यक्ति को सपरिवार आत्महत्या करने को विवश किया जा रहा है ….
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